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________________ अलङ्कारों का स्वरूप - विकास [ ५८६. के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि जहाँ किसी आधेयभूत वस्तु का उसके नियत आधार के विना अर्थात् निराधार वर्णन हो और वह निराधार वस्तु-वर्णन उपपन्न हो, वहाँ विशेष अलङ्कार होता है । रुद्रट के अनुसार, जहाँ एक ही वस्तु का एक साथ (पर्याय से नहीं) अनेक आधारों में सद्भाव वर्णित हो, विशेष का अन्य रूप माना जाता है । २ विशेष के एक और रूप के सम्बन्ध में रुद्र ने कहा है कि जहाँ कर्त्ता कोई कार्य करता हुआ उसके साथ ही कोई ऐसा अन्य कार्य भी अनायास कर देता है, जिस कार्य को करने में वह असमर्थ रहता है, तो ऐसे वर्णन में विशेष अलङ्कार माना जाता है । 3 वहाँ परवर्ती काल में रुद्रट के ये तीनों विशेष प्रकार स्वीकृत हुए हैं । मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ, जयदेव, अप्पय्य दीक्षित, जगन्नाथ आदि सभी मान्य आचार्यों ने विशेष के तीनों रूपों के रुद्रट - कृत लक्षण को ही अपनाया है । ४ प्रथम रूप की परिभाषा में केवल इतना कहा गया है कि प्रसिद्ध आधार के विना आधेय का वर्णन विशेष है । रुद्रट ने अपनी परिभाषा में निराधार वस्तु-वर्णन के उपपन्न होने का भी उल्लेख किया था । मम्मट आदि ने इसका उल्लेख अपेक्षातिरिक्त समझ कर छोड़ दिया होगा । वर्णन के अनुपपन्न होने में तो अलङ्कार की कल्पना ही नहीं की जा सकती । अलङ्कार की मूल धारणा में वर्णन के उपपन्न होने की धारणा के अन्तर्निहित होने के कारण विशेष की परिभाषा में उसका उल्लेख आवश्यक नहीं । विशेष के तीन रूप मान्य रहे हैं । उन तीनों की प्रकृति के सम्बन्ध में भी आचार्यों में मतैक्य रहा है । वे तीन रूप हैं(१) प्रसिद्ध आधार के विना किसी आधेय का वर्णन, (२) एक वस्तु का एक साथ अनेक आधारों में सद्भाव-वर्णन तथा (३) अन्य कार्य करने के क्रम में कर्त्ता का दैवयोग से अन्य अशक्य कार्य सम्पादित कर देने का वर्णन । १. किञ्चिदवश्याधेयं यस्मिन्नभिधीयते निराधारम् । तादृगुपलभ्यमानं विज्ञेयोऽसौ विशेष इति ॥ २. यत्र कमनेकस्मिन्नाधारे वस्तु विद्यमानतया । युगपदभिधीयतेऽसावत्रान्यः स्याद्विशेष इति ॥ - वही, ६,७ ३. यत्रान्यत्कुर्वाणो युगपत्कार्यान्तरं च कुर्वीत । तुमशक्यं कर्त्ता विज्ञ योऽसौ विशेषोऽन्यः ॥ - वही ९,९ रुद्रट, काव्यालङ्कार ९,५ ४. द्रष्टव्य — मम्मट, काव्यप्रकाश, १०, २०३, रुय्यक, अलं० सू० ५०,. विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, ९६, जगन्नाथ, रसगाङ्गधर पृ० ७२४,. अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द ९९-१०१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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