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________________ अलङ्कारों का स्वरूप - विकास १ [ ४८ ने उद्भट सम्मत तुल्ययोगिता लक्षण को सूत्रबद्ध करते हुए कहा कि जहाँ औपम्य गम्य हो और पदार्थगत रूप में प्रस्तुतों अथवा अप्रस्तुतों का समान धर्म से सम्बन्ध दिखाया जाय, वहाँ तुल्ययोगिता होती है । ' उद्भट की परिभाषा के 'उपमानोपमेयोक्ति शून्य' पद की जगह रुय्यक ने 'औपम्यस्य गम्यत्वे' पद का उल्लेख किया है । 'समान धर्माभिसम्बन्ध' पद के प्रयोग पर भामह की परिभाषा में प्रयुक्त 'तुल्यकार्यक्रियायोग' का प्रभाव है । उसका पदार्थगतत्व' पूर्ववर्ती आचार्यों को भी मान्य था । मम्मट ने प्रस्तुतों तथा अप्रस्तुतों का एक धर्म से सम्बन्ध तुल्ययोगिता का लक्षण माना है । २ औपम्य की गम्यता तथा तुल्ययोगिता की पदार्थगतता का उल्लेख उन्होंने परिभाषा में आवश्यक नहीं माना । इस प्रकार भामह, दण्डी तथा उद्भट की तुल्ययोगिता - परिभाषाओं में तुल्ययोगिता के उपरिविवेचित तीन स्वरूप प्रस्तुत हुए । आचार्य वामन ने भामह की तुल्ययोगिता विषयक मान्यता का, भोज ने दण्डी की एतद्विषयक धारणा का तथा रुय्यक, मम्मट आदि आचार्यों ने उद्भट की तुल्ययोगितापरिभाषा का समर्थन किया। फलतः, अनेक प्रस्तुतों अथवा अनेक अप्रस्तुतों एकधर्माभिसंबन्ध ही तुल्ययोगिता की बहुमान्य परिभाषा है । पण्डितराज जगन्नाथ, जयरथ आदि दीपक और तुल्ययोगिता का अलग-अगल अस्तित्व नहीं मानते । रुद्रट ने भी तुल्ययोगिता का उल्लेख नहीं किया था । सम्भव है कि वे भी दीपक से पृथक् तुल्ययोगिता का स्वरूप- निरूपण आवश्यक नहीं मानते हों । यह विचारणीय है कि दीपक से स्वतन्त्र तुल्ययोगिता की सत्ता मानी जाय या नहीं । हम यह देख चुके हैं कि दीपक से तत्त्व लेकर ही तुल्ययोगिता आविर्भूत हुई है । अनेक पदार्थों का एक धर्म से सम्बन्ध दोनों का प्रधान १. औपम्यस्य गम्यत्वे पदार्थगतत्वेन प्रस्तुतानामप्रस्तुतानां वा समानधर्माभिसम्बन्धे तुल्ययोगिता । —रुय्यक, अलं० सर्वस्व सू० सं० २३ २. नियतानां सकृद्धर्मः सा पुनस्तुल्ययोगिता । - मम्मट, काव्यप्र० १०, १०४ नियतानां प्राकरणिकानामेव अप्राकरणिकानामेव ॥ - वही, वृत्ति । ३. परम्परा के अनुरोध से तुल्ययोगिता और दीपक को पृथक्-पृथक् परिभाषित करने पर भी जगन्नाथ ने कहा है : - तुल्ययोगितातो दीपकं न पृथग्भावमर्हति । धर्मसकृद्वृत्तिमूलाया विच्छित्तेरविशेषात् । - रसगङ्गाधर पृ० ५१५ ४. द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ अध्याय २
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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