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________________ ३६८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण या अतिशयोक्ति के मूल-तत्त्वों के आधार पर अर्थालङ्कारों के दो प्रमुख वर्गों की कल्पना की जा सकती है। ___अर्थालङ्कारों का विभाजन आचार्यों ने वाच्य और प्रतीयमान वर्गों में भी किया है। विद्यानाथ ने भी प्रतीयमान वास्तव, प्रतीयमान औपम्य आदि वर्गों में ऐसे अलङ्कारों को रखा है, जिनमें अर्थ प्रतीयमान रहते हैं।' अपह्न ति, उत्प्रेक्षा आदि के वाच्य और गम्य-भेद किये गये हैं। इस प्रकार एक ही अलङ्कार वाच्य भी होता है और गम्य भी। वाच्य और व्यङग्य या प्रतीयमान वर्गों में अलङ्कार-विभाजन में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि व्यङग्य तथा वाच्य पर आश्रित अलङ्कार पृथक्-पृथक् नहीं हैं। डॉ० ओमप्रकाश शर्मा ने अपने शोध-प्रबन्ध में व्यङग्य और अव्यङग्य वर्गों में अलङ्कारों के विभाजन का प्रयास किया है; पर वे इस क्षेत्र में कोई नवीन स्थापना नहीं कर सके । उन्हें उक्त दो शीर्षों में विभाजन के क्रम में प्राचीन आचार्यों के द्वारा निर्धारित सादृश्यमूलक, विरोधमूलक, शृङ्खलामूलक आदि उपवर्गों का सहारा लेना ही पड़ा है। उलटे नवीन स्थापना के मोह में उन्होने कुछ भ्रान्त वर्गीकरण भी कर दिया है। उत्प्रेक्षा आदि को उन्होंने केवल व्यङ्ग य-मूलक अलङ्कारवर्ग में रखा है ।२ उत्प्रेक्षा गम्या भी होती है; पर उसके वाच्य-भेद को व्यङ ग्यमूलक अलङ्कार-वर्ग में रखने में क्या औचित्य हो सकता है ? रुद्रट, रुय्यक आदि आचार्यों ने अर्थालङ्कार के कुछ मूल तत्त्वों के आधार पर अलङ्कार का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। उनकी अलङ्कारवर्ग-धारणा परीक्ष्य है। रुद्रटकृत वर्गीकरण काव्यालङ्कार को तत्तदलङ्कार-तत्त्वों के आधार पर वर्गीकृत करने का प्रयास आचार्य रुद्रट ने किया। उनके पूर्व अलङ्कारों के विधायक तथा व्यावर्तक वक्रोति, सादृश्य आदि तत्त्वों का निर्देश अवश्य मिलता है; पर उन मूलभूत तत्त्वों के आधार पर अलङ्कारों के वर्गों की कल्पना नहीं की गयी थी। उद्भट ने 'काव्यालङ्कारसारसंग्रह' में अलङ्कारों को छह वर्गों में अवश्य १. अर्थालङ्काराणां चातुर्विध्यम् । केचित् प्रतीयमानवास्तवः केचित् प्रतीय मानौपम्याः। केचित् प्रतीयमानरसभावादयः। केचिदस्फुटप्रतीयमाना इति ।-विद्यानाथ, प्रतापरुद्रयशोभूषण, पृ० ३३७ २. ओमप्रकाश शर्मा, रीतिकालीन अलङ्कार-साहित्य, पृ० ४६६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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