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________________ ११६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण ने दीपक की परिभाषा को अधिक स्पष्ट कर दिया है। दीपक में प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत का साधर्म्य व्यङग्य होता है। ___ पर्यायोक्त, उदात्त, श्लिष्ट, रूपक तथा दीपक अलङ्कारों के इस विवेचन से स्पष्ट है कि उद्भट ने पूर्ववर्ती आचार्यों के मतानुसार ही उनके स्वरूप का विवेचन किया है; किन्तु उनके स्वरूप को अधिक स्पष्ट करने का श्रेय उन्हें (उद्भट को) प्राप्त है। समासोक्ति ___ उद्भट की समासोक्ति-विषयक मान्यता भामह की तद्विषयक धारणा से अभिन्न है।' उनकी रचना में भामह की समासोक्ति-परिभाषा का ही शब्दभेद से उपस्थापन हुआ है। उपमेयोपमा उद्भट ने शब्दान्तर से भामह के उपमेयोपमा-लक्षण को ही उपस्थित किया है। संसृष्टि दण्डी के सङ्कीर्ण के दो भेदों में से 'सर्वेषां समकक्षता' की धारणा को लेकर उद्भट ने संसृष्टि अलङ्कार की परिभाषा की कल्पना की है। प्रतिवस्तूपमा प्रकारान्तर से भामह की प्रतिवस्तूपमा-धारणा को ही उद्भट ने प्रस्तुत किया है और उपमा से पृथक् अलङ्कार के रूप में उसका उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट है कि समासोक्ति, उपमेयोपमा, संसृष्टि तथा प्रतिवस्तूपमा के १. द्रष्ट व्य-उद्भट, काव्यालं० सार सं०, २, २१ तथा भामह, काव्यालं० २, ७६ २. द्रष्टव्य-उद्भट, काव्यालं० सार सं०, ५, २७ तथा भामह, . काव्यालं०, ३, ३७ ३. द्रष्टव्य–दण्डी, काव्याद०, २, ३६० तथा उद्भट, काव्यालं० __ सार सं० ६, ६ ४. द्रष्टव्य-उद्भट, काव्यालं० सार सं० १, ५१ तथा भामह, काव्यालं० २, ३४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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