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________________ वृत्तमौक्तिक पण्डित थे। संस्कृत काव्य-रचना में उनकी गति प्रखर और अबाध थी इसलिये उन्होंने उक्त प्रकार के सब छन्दों के उदाहरण स्वरचित पद्यों द्वारा ही प्रदर्शित किये हैं । प्राकृत, अपभ्रंश और प्राचीन देशी भाषा के प्रधानवृत्तों के उदाहरण-स्वरूप पद्य भी उन्होंने संस्कृत में ही लिखे। हिन्दी-राजस्थानी-गुजरातो भाषा में बहुप्रचलित और सर्वविश्रुत दोहा, चौपाई, सवैया, कवित्त और छप्पय जैसे छन्द भी उन्होंने संस्कृत में ही अवतारित किये। __ इन ग्रंथों से विलक्षण एक ऐसा छन्द-विषयक अन्य बडा ग्रन्थ भी हमने ग्रन्थमाला में गुम्फित किया है जो 'रघुवरजसप्रकास' है। इसका कर्ता चारण कवि किसनाजी पाढा है, वह उदयपुर के महाराणा भीमसिंह जी का दरबारी कवि था। वि० सं० १८८०-८१ में उसने इस ग्रन्थ की राजस्थानी भाषा में रचना की। जिसको कवि 'मुरधर भाखा' के नाम से उल्लिखित करता है। यह छन्दोवर्णन-विषयक एक बहुत ही विस्तृत और वैविध्य-पूर्ण ग्रन्थ है। कर्ता ने इस ग्रन्थ में छन्दःशास्त्र-विषयक प्रायः सभी बातें अंकित कर दी हैं। वर्णवृत्त और मात्रावृत्तों के लक्षण दोहा छन्द में बताये हैं। उदाहरणभूत सब पद्य अर्थात् वृत्त कवि ने अपनी 'मुरधरभाखा' अर्थात् मरुभाषा में स्वयं ग्रथित किये हैं। इस प्रकार संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के सुप्रसिद्ध सभी छंदों के उदाहरण उसने 'मरुभाखा' में ही लिखकर अपनी देशभाषा के भावसामर्थ्य और शब्दभंडार के महत्त्व को बहुत उत्तम रीति से प्रकट किया है । इसके अतिरिक्त उसने इस ग्रंथ में राजस्थानी भाषाशैली में प्रचलित उन सैंकड़ों गीतों के लक्षण और उदाहरण गुम्फित किये हैं जो अन्य भाषा-ग्रन्थित छंदग्रन्थों में प्राप्त नहीं होते। प्रस्तुत 'वृत्त मौक्तिक' ग्रन्थ इस ग्रन्थमाला का छंदःशास्त्र विषयक ६ठा ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ भी वृत्तमुक्तावली के समान संस्कृत में गुम्फित है। वृत्तमुक्तावली के रचना काल से कोई एक शताब्दी पूर्व इसको रचना हुई होगी। इसमें भी वृत्तमुक्तावली की तरह सभी वृत्तों या पद्यों के उदाहरण ग्रन्थकार के स्वरचित हैं। वृत्तमुक्तावली की तरह इसमें
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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