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________________ सञ्चालकीय वक्तव्य भ्रंश भाषा के साहित्य में जिस प्रकार के अनेकानेक मात्रागणीय छन्दों का विकास और प्रसार हुआ है उनका सोदाहरण लक्षण-वर्णन इस रचना में दिया गया है । 'संदेशरासक' जैसी रासावर्ग की सर्वोत्तम रचना में जिन विविध प्रकार के छन्दों का कवि ने प्रयोग किया है उन सब का निरूपण इस ग्रन्थ में मिलता है । प्राकृतपिंगल नाम के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ में जिस प्रकार के छन्दों का वर्णन दिया गया है उनमें के प्रायः सभी छन्द इस ग्रन्थ में, उसी शैली का पूर्वकालीन पथप्रदर्शन करने वाले, मिलते हैं। जिस प्रकार प्राकृतपिंगल में दिये गये उदाहरणभुत पद्यों में, कर्ण, जयचंद, हमीर आदि राजाओं के स्तुति-परक पद्य मिलते हैं उसी तरह इस ग्रन्थ में भीमदेव, सिद्धराज जयसिंह, कुमारपाल आदि अणहिलपुर के राजाओं के स्तुतिपरक पद्य दिये गये उक्त तीनों ग्रन्थों का सम्पादन हमारे प्रियवर विद्वान् मित्र प्रो० एच० डी० वेलणकरजी ने किया है जो भारतीय छन्दःशास्त्र के अद्वितीय मर्मज्ञ विद्वान् हैं । इन ग्रन्थों की विस्तृत प्रस्तावनाओं में (जो अंग्रेजी में लिखी गई है) सम्पादकजी ने प्राकृत एवं अपभ्रंश के पद्य-विकास का बहुत पाण्डित्यपूर्ण विवेचन किया है। इन ग्रन्थों के अध्ययन से अपभ्रंश और प्राचीन राजस्थानी-गुजराती, हिन्दीभाषा के विविध छंदों का किस क्रम से विकास हुआ है वह अच्छी तरह ज्ञात हो जाता है। विगत वर्ष में हमने इसी ग्रन्थमाला के ६६ वें मरिण के रूप में 'वृत्तमुक्तावली' नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया-जिसके रचयिता जयपुर के राज्यपण्डित श्रीकृष्ण भट्ट थे; महाराजा सवाई जयसिंह ने उनको बड़ा सम्मान दिया था। वृत्तमुक्तावली में वैदिक छन्दों का भी निरूपण किया गया है, जो उपर्युक्त ग्रन्थों में आलेखित नहीं हैं। वृत्तमुक्तावली में वैदिक छन्द तथा प्राचीन संस्कृत एवं प्राकृत-साहित्य में सुप्रचलित वत्तों के अतिरिक्त उन अनेक देश्यभाषा-निबद्ध वृत्तों का भी निरूपण किया गया है जो उक्त प्राचीन ग्रन्थकारों के बाद होने वाले अन्यान्य कवियों द्वारा प्रयुक्त हुए हैं। श्रीकृष्ण भट्ट संस्कृत-भाषा के प्रौढ
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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