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________________ [ २ ] में सफलतापूर्वक लक्षण निर्वाह करते हुए संस्कृत में रचना कर के उदाहरण प्रस्तुत करना कवि की असाधारण प्रतिभा और भाषा पर अधिकार का परिचायक है । ऐसा लगता है कि कविकलानिधिजी ने अपनी इस रचना में वृत्तकल्पद्रुम कर्ता श्री जयगोविन्द ( वाजपेयी) का आदर्श सामने रखा है जिनका इन्होंने पृ० २८ में सम्मानपूर्वक संदर्भ दिया है । श्रीकृष्णभट्ट एक सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी कवि, विद्वान् और मनीषी थे । काव्य, साहित्य, छन्दः शास्त्र, व्याकरण और वेदान्तादि विविध विषयों पर उनकी स्वतंत्र एवं अनूदित रचनाएँ उपलब्ध हुई हैं और दिनों-दिन प्राप्त होती जा रही हैं। जयपुर - नगर-संस्थापक, सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, रणपंडित प्रौर विद्वान् एवं विद्वदनुग्राही ज्योतिर्विद्याविद् महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा समादृत इन महाकवि के विशिष्ट ऐतिहासिक काव्य 'ईश्वर विलास' और सुललित गंभीर पद्यनिगुम्फित 'पद्यमुक्तावली' का क्रमशः प्रकाशन प्रतिष्ठान द्वारा पूर्व में किया जा चुका है और यह 'वृत्तमुक्तावली' साहित्यसुरसिक विद्वान् पाठकों के करकमलों प्रपित की ही जा रही है । इन तीनों और विद्वान् सम्पादक महोदय द्वारा पूर्व सम्पादित ग्रंथों एवं प्रस्तुत कृति में उल्लिखित रचनाओं के अतिरिक्त श्रीकृष्णभट्ट निर्मित 'रामगीतम्' और 'प्रशस्तिमुक्तावली' नामक रचनाओं का पता और लगा है। अपर कृति की एक खण्डित प्रति प्रतिष्ठान के संग्रह में मिली है, जिसके प्राद्य दो पत्र प्राप्त हैं । यदि कदाचित् यह कृति सम्पूर्ण रूप में प्रथवा इसके अभी अनुपलब्ध दो पत्र प्राप्त हो सके तो कविकलानिधिजी की इस सरस एवं वल्लभ-सम्प्रदायान्तर्गत पत्र - शिष्टाचार-पद्धति परिचायक रचना का भी सहृदय साहित्यानुरागियों को प्रास्वाद कराने का सुअवसर प्राप्त हो सकेगा । श्रीकृष्ण भट्ट की रचनाओं के प्रति संस्कृत के विद्वानों का ध्यान सर्वप्रथम हमारे सम्माननीय मित्र सुविख्यात भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना ग्रन्थ-संग्रहाध्यक्ष कीर्तिशेष परशुरामकृष्ण गोड़े महोदय ने प्राकृष्ट किया था । उन्होंने प्रस्तुत वृत्तमुक्तावलीगत महाराजा सवाई जयसिंहजी द्वारा जयपुर नगर की संस्थापना और अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान-सम्बन्धी पद्यों के उद्धरण दे कर सिद्ध किया है कि वास्तव में इस यज्ञ का विधि-विधानयुक्त सम्पादन हुआ था । वृत्तमुक्तावली का रचना - काल ईश्वरविलास से पहिले का है क्योंकि इसकी रचना जयपुर की संस्थापना और अश्वमेधयज्ञानुष्ठान के अनन्तर हुई थी जिनकी तिथियां क्रमशः १७२८ ईस्वी और १७३२ ईस्वी मानी गई हैं । सवाई जयसिंह १. लॉफ्रेट, कैटलॉगस कैटलॉगरम्, भा. २; पृ. ५६६ ।
SR No.023459
Book TitleVruttamuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1963
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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