SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकार नहीं कर सकता। इसी से श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने लिखा है कि लक्ष्मीश्चपलस्वभावा, 'प्रयातु गुणा विवेकप्रमुखाः प्रयान्तु । प्राणाश्च गच्छन्तु कृतप्रयाणाः, मायातु सत्त्वं तु नृणां कदाचित्' । । १ ।। भावार्थ-चाहे चपलस्वभाववाली लक्ष्मी चली जाय, चाहे विवेक आदि गुण चले जायँ, और प्रयाणोन्मुख प्राण भी चले जायँ, परन्तु मनुष्यों का सत्त्व- वीर्य कभी नहीं जाना चाहिये, क्योंकि वीर्यरक्षा की जायगी तो विवेक प्रमुख सभी गुण स्वयं उत्पन्न हो जायेंगे । वीर्य रक्षा करना सर्वोत्तम गुण है इसी से अति दुर्जय कर्मों का नाश होकर परमानन्दपद प्राप्त होता है। अतएव व्याख्यान देने वालों को इस गुण की आवश्यकता है, लिखने वालों को, युद्धवीर को, और वादवीर को इसी गुण की आवश्यकता है। मुनिजन भी इस गुण के बिना आत्म कल्याण व देशोपकार नहीं कर सकते। कोई भी महत्व का कार्य जिसको देखकर लोक आश्चर्यान्वित हों, वह वीर्य रक्षा के अभाव में पूर्ण नहीं हो सकता। पूर्व समय में मनुष्यों की दिव्य शक्ति, उनका अभ्यास और उनकी स्मरणशक्ति इतनी प्रबल थी कि जिसको सुनने से आश्चर्य और संशय उत्पन्न होता है, लेकिन इस समय ऐसा न होने का कारण शारीरिक निर्बलता अर्थात् वीर्यरक्षा न करना ही है, पूर्व पुरुषों में वीर्य रक्षा (ब्रह्मचर्य) रखने का सद्गुण महोत्तम प्रकार का था, इससे वे आश्चर्यजनक कार्यों को क्षणमात्र में कर डालते थे। इसलिये साधुओं को उचित है कि सर्वप्रकारेण ब्रह्मचर्य पालन करते रहें, किन्तु विषयाधीन न हों । इसी तरह श्रावकों को भी ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिये परन्तु ब्रह्मचर्य का पालन करना बड़ा कठिन है, इससे यदि सर्वथा ब्रह्मचर्य न पाला जा सकता हो तो स्वदारसन्तोषव्रत धारण करना चाहिये । क्योंकि प्राण सन्देह को उत्पन्न करने वाला, उत्कृष्ट वैर का कारण, और दोनों लोक में विरुद्ध परस्त्री गमन, बुद्धिमानों को अवश्य छोड़ने के योग्य है। परस्त्रीगामी का सर्वस्व नष्ट होता है, श्री गुणानुरागकुलक १२७
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy