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________________ हिमाने विस्तारनार, अशोकवृक्षादिक आठ प्रातिहार्य धारक, चोत्रीश अतिशयथी सुशोमित, रागादिक शत्रुने हणनार अने बार गुण सहित ते अरिहंत कहेवाय. तथा ज्ञानावरणीयादिक आठ कर्म रहित, आउ गुणना धारक अने सिद्धक्षेत्रने विषे निराकारपद धारक ते सिद्ध कहेवाय. तथा ज्ञानादिक पांच आचारने पोते पालनार, बीजाने पलावनार पालतांने अनुमोदना करनार, धमनो उपदेश आप नार अने छत्रीश गुण सहित ते आचार्य कहेवाय. तथा पच्चीश गुणना धारक, बीजाओने भगावनार अने शुद्ध वाचना आफ्नार ते उपाध्याय कहेवाय. तथा सत्तावीश गुणना धारक, सत्तर प्रकारे संयम पालनार, पांच महाव्रतना धारक, बावीस परिसहने जीतनार, दशविध यति धर्मना धारक, पांच सुमति त्रण गुप्तिना आधार, षट्कायना रक्षक, मन वचन काय योगने गोपवनार अने बेंतालीश दोष रहित आहारनी गवेषणा करनार ते साधु कहेवाय. ते पूर्व कहेला पांच परमेष्ठीने ( नमिउं) के० त्रिकरण शुद्धिथी नमस्कार करीने (सुरनारयाण) के देवता तथा नारकीनी (ठिइ) के० स्थिति एटले आयुष्य (भवग) के० निवास करवानां घर अने (ओगाहणाय) के० शरीरनु प्रमाण, अहिं मूलगाथामां य शब्दनु ग्रहण कर्युछे तेथी ए देवतानां चिह्न, संस्थान, शरीर, अवधिज्ञान, अवधिज्ञाननो आकार, विमान, विषय, लेश्या ए (पत्तेयं) के० अनुक्रमे प्रत्येक (बुच्छ) के० कहीशुं, परन्तु (नरतिरियाण) के० मनुष्य अने तिर्यचना (भवण विणा) के० भानो शाश्वतां न होवाथी भुवन विना आयुष्य तथा अवगाहना कहीशुं. ए ३ द्वार थयां ॥१॥ तथा (उववायविरह) के एक देव उज्या पछी बीजो देव केटला कालने आंतरे उपजे ? ते उपपात विरहकाल ४, तथा (चवणविरहं) के० एक देव चव्या पछी बीजो देव केटला कालने आंतरे चवे ? ते च
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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