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________________ ॥ श्रीवर्द्धमानस्वामिने नमः ॥ Q l l l l l l l l l l l l l l l l l l l l l l ॥ श्री बृहत्संग्रहणी प्रारभ्यते ॥ 000000000000000000 l l श्री परमपददायकाष्टकर्मारिघातकत्रिलोकाधारकचतुर्दशरज्यात्मकप्रकटकारक धर्मदीपका दिप्ररूपकपरमपुरुषोत्तमाय नमोनमः ॥ श्रीदानादिचतुष्कस्य शक्त्या धारकशासनाधिष्ठायकदेवेभ्यो नमोनमः ॥ श्रीमहावीरस्वामिने नमोनमः ॥ वे ग्रंथकर्त्ता प्रथम शिष्टाचार पालवाने अर्थे तथा विघ्न निवारवाने अर्थ दोढ गाथाथी मंगलाचरण अने अभिधेय, प्रयोजन, सम्बन्ध तथा अधिकारी ए चार वस्तुनुं प्रतिपादन करेछे । नमिउं अरिहंताई, टिड्भवणो गाहणा य पत्तेयं ॥ सुरनारयाण वुच्छं, नरतिरियाणं विणा भवणं ॥ १ ॥ १ उववाय चवण विरहं, संखं इगसमइयं गमागमणे ॥ अर्थ - ( अरिहंताई) के० अरिहंतादिक पांच परमेष्ठिने-त्यां सकल त्रण भुवनना जनने चमत्कार उपजावनार, उत्तम अरिहंतम
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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