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________________ कोडिणं) के० एक उत्सेधांगुल प्रमाण वालना (२०९७१५२ ककडा थाय, एवा ककडाथी (स ) के० ते पालो ( समग्गं के० सघलो (निचिय) के० ठांसी ठांसीने (भरियं ) के० भरवो. ॥ ७७॥ तत्तो समए सपए, इकिके अवहिमि जो कालो। संखिज्जा खलु समया, बायर उद्धार पलियंमि ॥७८॥ ___ अर्थः– ( तत्तो) के० त्यार पछी ते कूवामांथी ( समए समए ) के० एक एक समये ( इकिके ) एक एक वालाग्र ( अवहियमि) के० काढवो. एम करतां ( जो कालो ) के० जेटलो काल कूवी खाली करतां थाय. तेमां ( संखिज्जा समया ) के० संख्याता समय ( खलु) के० निश्चे थाय छे. ते ( बायर उद्धारपलियंमि ) के० बादर उद्धार पल्योपम कहेवाय. ॥ ७८ ॥ इक्कीकमओ लोमं, कट्टमसंखिज्जखंडमदीस ।। समच्छेयाणतयए, सियागपलं भरिज्जाहिं ॥७९॥५॥ ___ अर्थः-( अओ) के० त्यासछी ( इकिक लोभं ) के० पूर्व कहेला (२०९७१५२) लोमखंड मांहेला एकेक लोमखंडना ( अद्दीस ) के० मनकल्पीत अदृश्य ( असंखिज्जरखंड कटु ) के० असंख्याता ककडा करीने (समच्छेयाणतयए) के० शिखाग्र सहित ( सियाणपल्लं ) के शिलाकपल्यने (भरिजाहिं ) के० भरवो. ॥ ७९ ॥ तत्तो समए समए, इक्किके अवहियंमि जो कालो॥ संखिज्जवासकोडी सुहुमे उद्धारपलीयंभि ॥०॥ ५.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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