SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ बहिया मणुसुत्तरओ, चंदा सूरा अवउिज्जोया || चन्दा अभिइजुत्ता, सूरा पुण हुंति पुस्सेहिं ॥ ७५ ॥ ५ अर्थ : - ( मणुमुत्तरओ) के० मानुषोत्तर पर्वतथकी (बहिया ) के० बहार ( चन्दा सूरा) के० चंद्र अने सूर्य ( अवधिउज्जीया ) के० निवल रह्या छता प्रकाश करे छे. तेमां ( चंदा ) के० चंद्र ( अभिजुत्ता ) अभिजित् नक्षत्र युक्त छे. पुण के० वली (मूरा ) के० सूर्य ( पुस्सेहिं ) के० पुष्प नक्षत्र युक्त (हुति ) के० होय छे. अहिं सूर्य सूर्यनी बच्चे चंद्र, अने चंद्र चंद्रनी वच्च सूर्य होवाथी चंद्र बहु शीतलता करता नथी अने सूर्य बहु तपता नथी. ॥ ७५ ॥ सूक्ष्म अने बादर एवा भेदथी उद्धार सागरोनम वे प्रकारनो छे. जं जोयणविच्छिन्नं तं तीउणं परिरयणसविसेसं ॥ तावइयं उच्चि, पल्लि पलिओनं नाम ॥ ७६ ॥ ५८अर्थः—( जं जोयणविच्छिन्नं ) के० जे एक योजन विस्ताखालो, (तंती परिरयणसविसेसं ) के० ते त्रणगुणाथी अधिक परिधि सहित, ( तावइयं उच्चि ) के० तेटली एटले एक योजन उंडो ते (पल्लि ) के० पालो अर्थात कूवो तेनुं (पलिओवमं ) नाम के० पल्योपम नाम कहेवाय. कारण एथी पल्योपमनुं प्रमाण थाय छे माटे. ॥ ७६ ॥ गाहिय बेहया, तेहीयाण उक्कोस सत्तरत्ताणं ॥ समग्गं स निचियं, भरियं वालाग्गकोडिगं ॥ ७७ ॥ अर्थ : - ( गाहिय) के० एक दिवसना, ( बेहीया ) के० दिवसना, (तेहीयाण) के० त्रण दिवसना, एम उक्कोस (सत्तरत्ताणं ) के० उत्कृष्टथी सात दिवस सुधीना घेटाना ( वालाग्ग
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy