SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतरने विवे ( जहन्नओ) के० जयन्यथी (पलिय) के एक पल्योपमनी आयुष्य स्थिति होय. तथा ईशान देवलोकना तेरे प्रतरने विजयन्यथी एक पल्योगम अधिक आयुष्य स्थिति होय छे. ॥ १७ ॥ ., हवे सौधन्द्रना चार लोकपालोनुं उत्कृष्ट आयुष्य कहे छे. सोमजमाणं सतिभाग-पलियं वरुणस्स दुन्नि देसूणा॥ वेसमणे दो पलिया, एस टिइ लोगपालाणं ॥१८॥ . अर्थः-पूर्व दिशानो लोकपाल ( सोम ) के० सोम छे अने दक्षिण दिशानो लोकपाल (जम) के० यम छे. ते बन्नेनुं उत्कृष्ट आयुष्य ( सतिभागालियं ) के एक पल्योपमना त्रीजा भाग सहित एक पल्योपमनुं छे. पश्रिम दिशानो (वरुणस्स) के० वरुण नामनो लोकपाल छे, तेनुं उत्कृष्ट आयुष्य ( दुन्नि देसूणा ) के० देशे उणा वे पल्योपमनुं छे. तथा उत्तर दिशाना (वेसमणे ) के० वैश्रमण नामना लोकपालन उत्कृष्ट आयुष्य ( दोपलिया ) के बे पल्योपमनुं छे. ए प्रमाणे ( लोगपालाणं ) के. सौधर्मेन्द्रना चारे लोकपालनी ( एस ठिइ ) के० ए उत्कृष्ट आयुष्यनी स्थिति वही ॥ १८॥ . ए लोकपालोनां विमान केवडां होय छे ? ने एक गाथाथी कहे छे:अद्धतेरसलक्खा, विमागमागं च लोगपालागं ॥ भणीयं च पंचमंगे, बुहेहिं निचं मुणेयव्यं ॥ १९ ॥ अथः-च) के० वली (लोगपालाणं) के० ए लोकपालनां' (विमाणमाणं) के० विमानोनुं प्रमाण एटले विमानोनी १ इन्द्रना मोटा अधिकारीओ.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy