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________________ १७ पयरुको सहिइओ, सव्वत्थ जहन्नओ पलियं ॥ १७ ॥१८ " अर्थ: - ( सोहम्मुकोस ) के० पहेला सौधर्म देवलोकने विषे जे उत्कृष्ट स्थिति बे सागरोपमनी छे तेने ( नियपयर ) के० पोताना तेर प्रतर साथे (वित्त ) के० वर्हेचीने पछी ( इच्छ संगुणिओ ) के० अहिं जे त्रीजा पांचमा अथवा सातमा प्रतरनुं आयुष्य काढवाने इच्छेलुं होय ते प्रतरनी साथे ज्यारे गुणाकार करीर त्यारे (पयर) के० ते प्रतरनी (उकोसहिओ ) के० उत्कृष्ट स्थिति थाय. ते आ प्रमाणे- सौधर्म देवलोकना तेरमा प्रतरे उत्कृष्ट आयुष्य स्थिति में सागरोपमनी छे, तेमांथी एक एक सागरोपमना तेर तेर भाग करोये त्यारे वे सागरोपमना तेरीया छवीश भाग थाय, तेने तेर भागे बेचतां एक सागरोपमना तेरीया बे भागनुं आयुष्य पहेले प्रतरे होय. एवीज रीते बीजा प्रतरनुं आयुष्य काढवु होय तो तेने ते साथे गुणीये तो एक पल्योपमना तेरीया चार भाग आवे. तेबीज रीते त्रीजे प्रतरे छ भाग, चोथे आठ भाग, पांचवे दश भाग, छठ्ठे बार भाग, सातमे चउद भाग एले एक सागरोपम अने पर तेरीओ एक भाग, आठमे एक सागरोपम ने ऋण भाग, नवमे एक सागरोपम ने पांच भाग; दशमे एक सागरोपम ने सात भाग, अग्यारमे एक सागरोपम ने नवभाग, बारमे एक सागरोपम ने अग्यार भाग अने तेरमे प्रतरे बे सागरोपम संपूर्ण आयुष्य होय. एज प्रमाणे ईशान देवलोकने विषे पण प्रत्येक प्रतरमां आयुष्य काढवानो आय जाणवो, परन्तु एटलं विशेष छे के-ए देवलोकना पहेले प्रतरे सागरोपमना तेरीया बेभागथी कांक अधिक आयुष्य कहेवु. एम दरेक प्रतरे अधिक आयुष्य कहेतां तेरमे प्रतरे वे सागरोपम साधिक आयुष्य स्थिति थाय, अने ( सव्वत्थ ) के० सौधर्म देवलोकना सर्वत्र एटले तेरे
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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