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________________ १५ अढार इंद्र छे, तेमने दरेकने (छ) के० छ छ अग्रमहिषीओ छे. तथा (नंतर ) के० व्यंतर देवतानी सोल निकायना काल महाकाल विगेरे बत्रीश इंद्र छे. तेमने दरेकने ( उ ) के० चार चार अग्रमहिषीओ होय छे, तथा ( जोईस) के० ज्योतिषीना चंद्र तथा सूर्य ए वे इन्द्रने ( उ ) के० चार अग्रमहिषीओ होय छे. तथा (कप्पदुर्गिदाणं ) के० सौधर्म तथा ईशान ए वे देवलोकना बे इन्द्र छे तेमने दरेकने ( अट्ठ ) के० आठ आठ अग्रमहिषीओ होय छे. सौधर्म तथा ईशान देवलोकथी उपरना देवलोकने विषे देवीनुं उपजवं नथी, तेथी त्यां परिग्रहीता देवीओ पण नथी. परंतु ते देवलोकना इंद्र तथा देवोने ज्यारे विषय सेववानी इच्छा थाय त्यारे तेमने यथायोग्य सौधर्म तथा ईशान देवलोकनी अपरिग्रहीता देवीओ उपभोगने अर्थ थाय छे, माटे त्यां अग्रमहिषीओनो संभव नथी ॥ १५ ॥ हवे देवलोकना प्रतरनी संख्या एक गाथावडे कहे छे:दुसु तेरस दुसु बारस, छ पण चउ चउ दुगे दुगे य च ॥ विज्जणुत्तरे दस, बिसी पथरा उवरि लोए || १६ || १८ अथः — जेम धरने उपराउपर माल होय छे, तेम देवलोकमां उपराउपर प्रतर होय छे. पण माळनी पेठे एक प्रतरथी बीजा प्रतरनी बच्चे टेकारूप कइ न होय. देवलोकनां दरेक प्रतरो आकाशमां निराधार होय. मां (दुसु ) के० सौधर्म अने इशान ए बे देवलोकना मलीने ( तेरस ) के० तेर प्रतर वलयाकारे छे. तेमां पूर्व महाविदेह अने पश्चिम महाविदेहनी वचमां अर्द्धवलयाकार खंडथी अर्द्ध अर्द्ध खंड करवा, जेमां एक दक्षिण दिशानो खण्ड, अने
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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