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________________ १४ पल्योपमनी अने अपरिग्रहीता देवीओनी ( पन्नास ) के० पचास पल्योपमनी आयुस्थिति होय छे. ( तह ) के० तथा ईशान देवलोके परिग्रहीता देवीओनुं ( नव ) के० नव पल्योपम अने अपरिग्रहीता देवीओनुं ( पंचवन्ना ) के० पंचावन पल्योपमर्नु आयुष्य होय छे ॥ १४ ॥ सौधर्म तथा ईशान देवलोकना देवताने भोग्य एवी जे पतिव्रता देवीओ छे ते परिग्रहीता देवीओ कहेवाय छे. सौधर्म देवलोके अपरिग्रहीता देवीओनां छ लाख विमान छे. ते अपरिग्रहीता देवीओ गणिका जाति छे. ते अपरिग्रहीता देवीओ वीजा पांचभा सातमा नवमा अने अग्यारमा देवलोकना देवोने भोग्य छे, तेथी जे देवीओ जे देवलोकने भोग्य छे ते त्यां जाय छे. तथा ईशान देवलोके अपरिग्रहीता देवीओनां चार लाख विमान छे. ए अपरिग्रहीता देवीओ चोथा छठ्ठा आठमा दशमा अने बारमा देवलोकना देवने भोग्य छे, तेथी जे देवीओ जे देवलोकने भोग्य छे ते त्यां जाय छे. हवे असुर कुमारादिक इंद्रोनी अग्रमहिषीओनी संख्या कहे छे. पण छ चउ चउ अठ्ठ य, कमेण पत्तेयमग्गमहिसीओ ॥ असुरा नागाइ वंतर - जोईस कप्प दुगिंदाणं ॥ १५ ॥ ४ अर्थः- जे प्रधान पटराणी होय ते अग्रमहिषी कहेवाय छे. तेमां भुवनपतिनी पहेली निकायनी बे दिशामां रहेनारा ( असुरो ) के ० ० असुरकुमारना चमरेन्द्र तथा बलीन्द्र नामना बे इंद्र छे. तेमने एक एकने ( पण ) के० पांच पांच ( अग्गमहिसीओ ) के० अग्रमहिषीओ होय छे. तथा ( नागाइ ) के० नागकुमार विगेरे बाकीना भुवनपतिनी नव निकाय छे तेना धरणेंद्र तभूतथा नेिंद्र विगेरे
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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