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सनत्कुमारथी आरंभी सहस्रार देवलोक सुधीना देवता चवीने ( एगि दिएसु ) के० एकेंदियने विषे (नो जंति) के० उपजे नहीं. वली ( आगयपमुहा) के० आनत देवलोकथी आरंभी पांच अनुतर विमान सुधीना देवता ( चविउँ ) के० चवीने (मणुएसु) के. संख्याता आयुष्याला पर्याप्ता मनुष्यमांहे (चेत्र ) के० निश्वे - च्छंति के० जाय छे. ।। २४७ ॥
हो जे देवताने जेवी रीते देवांगना साथे संभोग छे अने जे देवताने सर्वथा संभोग नथी ते कहे छे. कामवेदनाथी मनुष्यनी पेठे विषय सुख भोगवे. ते उपरना (दो) के० सनत्कुमार तथा माहेंद्र देवलोकना देवता देवांगनानां (करिस) के० स्तन भुज विगेरे अंगस्पर्शथी भोगसुख पामे छे. ते उपरना [दो] - अथे-(दोकप कायसेवी ) ० भुवनति व्यतर ज्यातषी तथा सौधर्म अने ईशान ए बे देवलोक सुयोना देवता अति उत्कृष्ट कामवेदनाथी मनुष्यनी पेठे विषय सुख भोगये. ते उपरना (दो) के० सनत्कुमार तथा माहेंद्र देवलोकना देवता देवांगनानां (फरिस) के० स्तन भुज विगेरे अंगस्पर्शथी भोगसुख पामे छे. ते उपरना [दो के० ब्रह्म अने लांतक देवलोकना देवता देवांगनानां (रूब) के० रूप देवीने विषय सुख पामे छे. ते उपरना (दो) के० शुक्र अने सहस्त्रार देवलोकना देवता देवांगनानां (सद्देहिं ) के० गीतहास्य विलासादिना शब्द सांभलवाथी संभोग सुखनी तृप्ति पामे छे. ते उपरना ( चउरो ) के० आनतादि चार देवलोकना देवताओ (मणेण) के०
(अप्पवियार।) के० अल्पविकारोपणाने लीधे विषय सुखथी रहित होवाथी ( अणंतसुहा ) के. अनंत मुखवाला छे. ॥ २४८ ॥