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________________ हैं । जिसमें अधिकरण कारकका सामान्यतः भेदोंका उल्लेख है । किन्तु उसके विषयमें कोई परीक्षा नहीं की गयी है । बादमें, वाक्यमें रहनेवाले कारकसमुदायके विषयमें परीक्षा की गयी है । अन्तमें वाक्यमें क्रियाके अध्याहारकी परीक्षा की गयी है । जो ज्ञातव्य एवं मननीय है । इस परीक्षाके अवलोकनसे कितनी ही नवीन बातें जाननेको मिलती हैं । कारकके विषयमें इसप्रकारके पूर्वपक्ष तथा उत्तरपक्ष ऐसी व्यवस्थित रीतिसे अन्य ग्रन्थोंमें उपलब्ध नहीं हैं । इन सब बातोंको देखते हुए निःसंकोच रूपसे ऐसा कहा जासकता है कि-कारकके विषयमें इसप्रकारके विचारोंसे युक्त अपने ढंगका यह आकारमें छोटा होतेहुए भी एक महत्त्व पूर्ण ग्रन्थ है। इन सभी कारणोंसे ही सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुप्रक्रियाकी स्वोपज्ञ हेमप्रकाश टीकामें विनयविजयजीगणिने कारकप्रकरणमें कारकपरीक्षाका नामोल्लेखपूर्वक तथा नामका उल्लेख किए विनाभी इस ग्रन्थके सन्दर्भ को उद्धृत किया है। तथा उसके आधारपर कितनीही शंकाओंका समाधानभी किया है। इस ग्रन्थके कर्ता महोपाध्यायपशुपतिका परिचय तथा उनके काल आदिके निर्णयका कोई साधन उपलब्ध नहीं। किन्तु इस ग्रन्थसे उनकी महान विद्वत्ता एवं उत्कृष्ट प्रतिभाका परिचय तो प्राप्त होजाता ही है । प्रस्तुत ग्रन्थमें उद्धृत कारिकायें अधिकतर भर्तृहरि की हैं । एक स्थानमें मण्डन (पाठान्तर-मदन) मिश्रका उल्लेखकर कारिका उद्धृत है । तथा अन्य अनेक कारिकाओंका मूल अज्ञात ग्रन्थ ही हैं । जिससे भी ग्रन्थकर्ताकी व्यापक विद्व. त्ताका समर्थन होता है।
SR No.023434
Book TitleKarakmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhankarvijay, Suryodayvijay
PublisherLakshmichand Kunvarji Nagda
Publication Year1961
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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