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________________ क्रियाविशेषके योगसे होनेबाली विभक्तियोंका सोदाहरण श्लोकबद्धरीतिसे प्रतिपादन तथा परिशिष्टरूपमें एकहीं विषयमें होनेवाली अनेक विभक्तियोंकाभी यथाक्रम सोदाहरण श्लोकबद्ध प्रतिपादनसे व्याकरणसूत्रोंके पृथक् पढ़नेकी आवश्यकता नहीं रह जाती है । तथा उदाहरण वाक्यभी शिक्षाप्रदरूपसे लिये जानेके कारण कारकके साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञानभी प्राप्त हो-इसका ध्यान रखा गया है । इस प्रकार व्याख्याताके श्रममें सोनेमें सुगन्धवाली कहावत चरितार्थ होती है । कारकविवरणके स्थलोंकी पदव्याख्यामें भी व्याख्याताकी व्याख्या करनेकी योग्यता विलक्षण रूपसे प्रगट है। प्रभा टिप्पणीभी व्याख्याके आशयों तथा विषम श्लोकोंका स्पष्टीकरण करनेसे तथा पाठान्तर आदिका संग्रह करनेसे वाचकोंके लिये अत्यन्त उपयोगी हुई है । इन सब बातोंसे ऐसा कहना कोई असंगत नहीं कि प्रभानामकी टिप्पणी तथा भद्रङ्करोदया व्याख्या सहित कारकविवरण पुस्तक वाचकोंको कारकविषयक अनेक पुस्तकोंके अवलोकन तथा अभ्यासके श्रमसे मुक्त करने में सर्वथा समर्थ है । इसप्रकार इसकी उपादेयता बढजाती है, यह कहने की आवश्यकता नहीं । कारकपरीक्षा:-कारकपरीक्षा नामका ग्रन्थ महोपध्याय पशुपति कृत है तथा गद्यात्मक है । इसमें कारकोंके अर्थ तथा उसके विषयमें स्वाभाविक रीतिसे ही मनमें स्फुरित होनेबाली आशङ्काओंका समाधान-पूर्वपक्ष उत्तरपक्षके रूपमें-सरल शैलीसे किया गया है । प्रथम, प्रत्येक कारकका क्रमशः पृथक् पृथक् निरूपण करतेहुए उस उस कारकके विषयमें पूर्वपक्ष उत्तरपक्ष किए गये
SR No.023434
Book TitleKarakmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhankarvijay, Suryodayvijay
PublisherLakshmichand Kunvarji Nagda
Publication Year1961
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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