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________________ मनशुद्धिअधिकारः उचितमाचरणं शुभमिच्छतां प्रथमतो मनसः खलु शोधनं ॥ .. गदवतामयकृते मलशोधने ____कमुपयोगमुपैतु रसायनं ॥ १ ॥ अर्थ-अध्यात्मनी शुद्धि करवा माटे प्रथमथी उचितपणे शुभ आचरणनी इच्छा करवी ने मननी शुद्धता करवी जेम रोगवंत प्राणी मल-शोधन करवाने रेच लीधा विना रसायन खाय तो, तेथी तेने कांइ गुण थाय नही; केमके मल जाय तेवार पछी रसायण खाय तो गुण करे; तेम प्रथम मनशुद्धि थइ होय तोज अध्यात्मनी शुद्धि थाय ॥ १॥ परजने प्रसभं किमु रज्यते द्विषति वा स्वमनो यदि निर्मलं ॥ विरहिणामरतेर्जगतो रते रपि च का विकृतिर्विमले विधौ ॥२॥ अर्थ हे चेतन ! जो तारुं मन निर्मल छे तो लोक ताहरा उपर राग धरशे अथवा द्वेष करशे ते थकी ताहरे शुं बगाड थवानो छ ? जेम चंद्रमा निर्मल छे, पण तेना उदयथी विरही जीवो अथवा चोर लोकोने अरति उपजे छ; अने जगतना बीजा जीवोने तेथी आनंद थाय छे; पण तेथी चंद्रमाने गुण अथवा अवगुण काइज थतां नथी ॥ २ ॥ रुचितमाकलयन्ननुपस्थितं स्वमनसैव हि शोचति मानवः ॥
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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