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________________ तत्वविन्दुः (५५) १५२ आ सप्त भंगीमा १ स्यात्अस्ति २ स्यात्नास्ति ३ स्यादव क्तव्य ए त्रण अविकल्परूप छे. कारण के एत्रण भंगी सामान्यद्रव्पने ग्रहण करे छे. सामोन्यद्रव्यविषयकज्ञानमां विक ल्प होतो नथी. आ त्रण भंगीथी संग्रह, व्यवहार अने रूजु सूत्रनयनो अनुक्रमे अभेद छे. अने तेथी संग्रह, व्यवहार, मुजुमूत्र ए त्रणनय पण निर्विकल्प कहेवाय छे. अने आगळनी ४ स्यात्अस्तिनास्ति. ५ स्यात् अस्ति च अवक्तव्य. ६ स्यात् नास्ति च अवक्तव्य. ७ स्यात्अस्ति नास्ति च युगपत् अरक्तव्य ए चार भंगी सविकल्पक छे. शंका-छेल्लो चार भंगो सविकल्पक छे तो तेनो निर्विकल्पकरूप संग्रह, व्यवहार, रूजु सूत्रमा केम अन्तर्भाव कर्यो. समाधान-यद्यपि संग्रहादिक, पर्यायसत्ताने बोधन करे छे तो पण पर्याय समुदाय एटले सम्पूर्ण अवयवनी सत्ताथी मूल द्रव्यनी सत्ता भिन्न नथी. जेम कोइ कहे के मारी पासे सो रूपैया छे. बोजो कहे के तमारो पासे पांच वीशी रूपैया छे. तो पांच वीशीनी पांच सत्ताथी सो रूपैयानी मूल एक सचा भिन्न नथी. जो भिन्न मानीए तो पांच सत्ताने मूकीने मूल एक सत्ता ठरवी जोइए. पण ते ठरती नथी. तेम अत्र पण अवयव समुदायनी सत्ताथी मूल सत्तार्नु स्वरूप कयंचित् भिन्न कहेवातुं नथी. तथा जणातुं नथी. अवयव समुदायनी
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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