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________________ ( ४) तत्वबिन्दु; कहेनारा संग्रहादि त्रण नय छे, अने व्यंजनपर्यायना शब्द, समभिरूड, एवंभूत ए त्रण भेद छे. १५१ सप्त भंगीनो प्रथमभंग संग्रहनयमां छे. अने विशेषग्रहण कर नार व्यवहारनयमां नास्तिरूप द्वितीय भंगनो अन्तर्भाव छ.. स्जुसूत्रमा त्रीजा अवक्तव्य भंगनो अन्तर्भाव छे. सम्मतितर्काभिमाययी अवक्तव्य त्रीजो भंग छे. रूजुसूत्रनो एक समय विषय छे. एक समयमां कोई शब्द कहेवातो नथी. कारण के एक शन्दनुं उच्चारण करतां असंख्याता समय थाय छे. तेथी रुजुसूत्रनयनी अपेक्षाए तृतीयभंग अवक्तव्य छे. चोथी भंगीस्यात् अस्ति नास्तिनो संग्रहनय तथा व्यवहारनयमां समावेश थाय छे. चोथी भंगीमां अस्ति संग्रहनो विषय छे. अने नास्ति, व्यवहारनो विषय छे. स्यात् अस्ति च अवक्तव्यरूप पंचमभंगीनो संग्रहनय तथा रूजु सूत्रनयमां अन्तर्भाव छे. कारण के अस्ति संग्रहनयनो विषय छे. अने अवक्तव्य रुजु सूत्रनो विषय छे. छठी स्यात् नास्तिच अवक्तव्य भंगीनो व्यवहार तथा रुजुसूत्र नयमां अन्तर्भाव छे. कारण के नास्त्यंश, न्यवहारनो विषय छे. अने अवक्तव्य, रुजु सूत्र नयनो विषय छे. स्यात् अस्तिनास्तिच युगपत् अवक्तव्यरूप सप्तम भंगनो संग्रह, व्यवहार, रुजु मूत्रमा अन्तर्भाव छे. आ प्रकारे सप्तभंगी अर्थनय जे संग्रह, व्यवहार, रुजु सूत्रथी भिन्न नथी. अर्थात् ते सप्तभंगी अर्थनय स्वरूप छे. इति सम्मति तर्क द्वितीय कांड इत्तौ ४६ मा पाने.
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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