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________________ (0) . तत्त्वबिन्दुः । ११ ज्यां मिथ्याबनी पुष्टि न थाय. अने स्याद्वादमार्ग विरूद्ध भा षण थाय नहीं. अने आत्मस्वरूप उपादेयरूपे प्ररूपवामां आवे. अने शुभक्रियानो आदर बतावे अने शुभक्रियाना फलनी वांछा न करावे, तिरस्कार बतावे, तेम अशुभक्रियानो तिरस्कार बतावे, अशुभक्रियानां फल दुर्गति आदि बतावे, इत्यादि आगमोक्तमरूपणाने देशना समजवी, पुण्यक्रिया सेववी पण तेना फलनी वांछा न करवी. तेनुं रहस्य एम समजवु के पुण्य क्रिया शुभ व्यापारे शुभयोगथी नहि आदरे तो मार्ग विरूद्धता थाय, परंपराए पण वीतराग मार्गे जोडाय नहि, अने जो पुण्यना फलनी वांछा करे.तो निदानरूप मिथ्यास प्रणमे, माटे पुण्य फल वांछा रहित शुभ क्रिया करवी. १२ जीवने थतो खेद निवारवा अर्थे पूर्वबंधकर्म संभारीए ते आ प्रमाणे-जेवां जीवे कर्म बांध्यांछे तेवां उदये आवेछे, ते मध्ये केटलांक कर्म प्रदेशे वेदीने खेरवेछे, केटलांक निकाचित कर्म बांध्याछे ते विपाके जीव वेदीने खेरवेछे, पण ज्ञानी आत्मा कर्म भोगवतां उदय निष्फल करे. आलोवे, निंदे, पश्चाताप करे. त्यारे अल्पबंध थाय, अने बहुनिर्जरा थाय, माटे जानी जीव समभावे कर्म वेदी उदय निष्फल करेछे. उपयोगे मात्मस्वरूप विचारे त्यारे अल्पकर्म बंध थाय.
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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