SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२० ) तबिन्दु . ३८० ज्ञान, दर्शन अने चारित्र एज मुख्यतः मोक्षमार्ग छे, ज्ञानदर्शनचारित्राणिः मोक्षमार्गः तत्त्वार्थ सूत्रवचनात् ३८१ पुण्य प्रकृतिनो एक ठाणायेो रस पडे नहि, योगथी प्रदेशबंध अने प्रकृति बन्ध पडे, अने कषायथी रस बन्ध, अने स्थितिबन्ध पडे. ३८२ निश्चयमतथी सर्व वादर वस्तु गुरुलघुछे. बादर वस्तु सर्व गुरुलघु पर्यायविशिष्ठछे. अने सूक्ष्म तो अगुरु लघुछे. अगुरुलघु वस्तु संबंधी पर्यायो पण अगुरु लघु कहेवायछे. इहनिश्चयमतेन बादरं वस्तु सर्वमपि गुरुलघु ।। सूक्ष्मंत्व गुरुलघु तत्राऽगुरुलघुसंबंधिनः पर्यायाअपि अगुरुलघुवः समये अभिधीयन्ते (वि) ३८३ जे एक जाणेछे ते सर्व जाणेछे. जे सर्व जाणेछे ते एक जाणे छे. एक वस्तु पण सर्व स्वपरपर्यायावडे जाणनार लोकालोक गत सर्व वस्तुने सर्व स्वपर पर्यायोवडे युक्त जागेछे, सर्व
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy