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________________ काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाईयाँ व विभिन्न चक्र २७. एक रूप में उसे सूर्य वर्ष ही मान लिया गया है ।' कनिंघम ने सूर्य सिद्धान्त के आधार पर बृहस्पति मान की ६० वर्षीय गणना पद्धति के लिए कलियुग के बीते वर्षों को ८६ से भाग देकर चालू वर्ष तथा चक्र ज्ञात करने की पद्धति दी है । बृहस्पति मान की ६० वर्षीय गणना पद्धति के लिए कलियुग के बीते वर्षों को ८६ से भाग दें । भजन फल में भाज्य अर्थात् कलि के बीते वर्षों को जोड़ ६० से भाग दें, जो शेष बचे यदि वह ३१ से कम है तब उसमें २८ जोड़ें, यदि ३१ से अधिक है तब २७ जोड़ें इससे चक्र का चालू वर्ष निकल आयेगा । उदाहरण - कलियुग ३३२४ = २२३ ई० ३३२४÷८६–३८; ८ + ३३२४ = ३३६२ ३३६२÷६०=५६ + २ अधिक ; जोड़ें २-१-२८= ३० इस प्रकार कलियुग का ३३२४ वां वर्ष बृहस्पति के ६० वर्षीय चक्र के ५७ वें चक्र का ३० वां चालू वर्ष है । उत्तरी हिन्दुस्तान में शिला लेख आदि में बार्हस्पत्य संवत्सर लिखे जाने के उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं, परन्तु दक्षिण में इसका प्रचार अधिकता के साथ मिलता है । लेखादि में इसका सबसे पहला उदाहरण दक्षिण के चालुक्य राजा मंगलेश के समय के बादामी के स्तम्भ लेख में मिलता है जिसमें "सिद्धार्थ " संवत्सर लिखा है । बृहस्पति का एक दूसरा चक्र १२ संवत्सर का है । जिसके वर्षों के नाम चन्द्र महीनों पर दिये गये हैं । इसके वर्षों के नाम कार्तिकादि १२ महीनों के अनुसार है । परन्तु कभी-कभी महीनों के नाम से पहले महा लगाया जाता है, जैसा कि महाचैत्र, महावैसाख आदि ।" "यह १२ वर्षीय चक्र दो प्रकार का है । १. एलेग्जेण्डर कनिंघम, 'ए बुक ऑफ इण्डियन एराज', वाराणसी, १६७६, पृ० १६ २ . वही ३. राय बहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, 'भारतीय प्राचीन लिपि माला, ' अजमेर, १६१८, पृ० १८६ ४. वही, पृ० १८६
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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