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________________ १६४ भारतीय संवतों का इतिहास है। वहां प्रचलित संवत् को समाप्त कर अपने संवत् का प्रचलन किया तथा उसके समूल नाश का प्रयास किया । आज बहुत से संवत् ऐसे हैं जिनके विषय में मात्र एक-दो लेख ही उपलब्ध हैं; बाकी साहित्य अथवा इतिहास में इनका उल्लेख नहीं मिलता। ऐसा स्वदेशी शासकों की पारस्परिक स्पर्धा के कारण हुआ। जनता के लिए यह सहज प्रक्रिया बन गयी कि जब भी कोई शासक वंश बदलेगा वह अपनी नई नीतियों को उन पर आरोपित करेगा । अतः जनता अधिकांश संवतों के बारे में यही धारणा रखती कि यह शासक द्वारा उन पर लाग किया गया एक नया नियम है। उसके समझने व अपनाने का रुख जनता का नहीं था बल्कि वह तो अपनी पूर्व प्रचलित गणना पद्धति से ही जड़ी रहना चाहती थी। इस प्रकार शासकों द्वारा आरोपित संवत् अधिक दिन स्थायी न रह सके तथा शीघ्र लुप्त हो गये। अनेक संवत् मात्र राजनैतिक दबाव के कारण बड़े राजाओं से छोटों ने ने ग्रहण कर लिए । अतः आधीन देश का शासक व जनता उसे घृणा की दृष्टि देखती थी व ऐसी व्यवस्था से शीघ्र छुटकारा चाहती थी। अनेक संवत् मात्र धार्मिक उद्देश्यों को लेकर बनाये गये अतः उनकी जटिल गणना पद्धति व बड़ी-बड़ी संख्याओं के कारण व्यवहारिक उपयोगिता न रही, अनेक संवत् वित्तीय उद्देश्यों को लेकर बनाये गये, जिनका राजनैतिक व धार्मिक महत्व नगण्य था अतः इस प्रकार के एक उद्देशीय संवत् अधिक आयु न पा सके । दूसरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शीध्र ही नये संवत् आरम्भ करने पड़े । यदि संवत् के प्रारम्भ बहुत से उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किये जाते तब सम्भव था कि वे स्थायी होते । शक व विक्रम संवत् इसी तथ्य का प्रतीक है कि उन्होंने राजनैतिक, धार्मिक, अभिलेखीय, साहित्यिक व प्रशासनिक कार्यों को साथसाथ पूरा किया इसीलिए उनका अस्तित्व आज भी बना हुआ है जबकि इनके बाद में आरम्भ होने वाले संवत् कब के समाप्त हो चुके हैं। भारत में वर्तमान समय में अनेक संवत् प्रचलित हैं किन्तु उनमें से किसी में भी राष्ट्रीय संवत् बन पाने की क्षमता नहीं है । किसी भी संवत् को राष्ट्रीय बनाने के लिए उसकी कुछ विशिष्टतायें होनी चाहिए। राष्ट्रीय संवत् की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है : जिस संवत् को राष्ट्र के अधिकांश भाग में प्रयोग किया जाये, राष्ट्रीय भावनायें जिसके साथ जुड़ी हों तथा जो इतिहास का प्रमुख आधार रहा हो-ऐसे संवत् को राष्ट्रीय संवत् कह सकते हैं । इस परिभाषा के सन्दर्भ में यदि देखा जाये तो मारत में वर्तमान समय में प्रचलित
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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