SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संवतों का इतिहास सैद्धान्तिक नियमों का ही प्रयोग करते थे। सैद्धान्तिक पंचांग की आरम्भिक स्थिति में चैत्र पद्धति का प्रयोग करते थे। साथ ही इस समय तक कलियुग ने भी निश्चित रूप धारण कर लिया था। भारतीय ज्योतिषियों में सैद्धान्तिक पंचांग के संदर्भ में दो प्रमुख बातों पर मत भिन्नता है । प्रथम-ग्रहण की वास्तविक स्थिति व द्वितीय-नक्षत्रीय माध्य गति का कलैन्डरीय उद्देश्यों के लिए प्रयोग । आरम्भ में ज्योतिष सिद्धान्त में चैत्र पद्धति का प्रयोग था, बाद में उसमें रैवतक का प्रयोग होने लगा और उसके बाद के समय में जब महाविषुव इन दोनों से ही हट गया तब भी भार. तीय ज्योतिषी चैत्र अथवा रैवतक पद्धति का ही प्रयोग करते रहे सम्भवतः इसका कारण विषुव का अपूर्ण ज्ञान था। इसका सीधा परिणाम यह है कि चन्द्र व सौर्य दोनों के ही वर्ष और मास तथा मलमासों में अन्तर आ गया है। इस कारण रैवतक व चैत्र सिद्धान्तों से अलग-अलग गणना आरम्भ हई। अनेक खगोल शास्त्रियों के हाथों में ज्योतिष की स्थिर बातें बदलती रहीं और थोड़े-थोड़े विरोध के साथ अनुमानित की जाती रही । भिन्न-भिन्न ज्योतिषियों ने विभिन्न सुधारों का प्रयोग किया। आधुनिक सूर्य सिद्धान्त के निर्माण से इस स्थिति में थोड़ा सुधार आया। सैद्धान्तिक पंचांग के बाद इस क्षेत्र में अनेक सुधार हुये, १० वीं शताब्दी के अन्त तक आधुनिक सूर्य सिद्धान्त का विकास हो गया। इसके साथ ही साथ मुस्लिम शासकों ने चन्द्र पंचांग लागू किया। तत्पश्चात् भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार से आधुनिक वैज्ञानिक खगोल शास्त्र का भारत में प्रारम्भ हुआ, १६ वीं शताब्दी में अन्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक सुधारों के समान ही पंचांग सुधार आन्दोलन भी चलाये गये । इस समय के सुधारों की एक विशेषता यह रही कि न केवल खगोल शास्त्रियों ने पंचांग निर्माण का कार्य किया बल्कि धर्म नेताओं ने भी उसमें भाग लिया। "ज्योतिष गणना कार्य में सुविधा के लिए कारणा नाम की तालिकायें बनाई गई इनमें से दो तालिकायें मकरन्द तथा रामविनोद जो सूर्य सिद्धान्त पर आधारित है, अब भी बहुतायात में पंचांग निर्माताओं द्वारा प्रयोग की जाती है, १० वीं शताब्दी ए. डी. में आर्य भट्ट द्वितीय द्वारा वाक्य करन तथा करन प्रकाश ज्योतिष के महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की गई जिनका प्रयोग दक्षिण भारत के कुछ भागों तथा मालवार में बहुतायात से होता है ।"२ १. अपूर्व कुमार चक्रवर्ती, 'इण्डियन कैलेण्डरिकल साइंस', कलकत्ता, १९७५, पृ० ३६ । २. वही, पृ० ४४।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy