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________________ ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत् विभिन्न विचारकों के मतों के अध्ययन के बाद यही निर्णय दिया जाता है कि पुराना शक सम्वत् (७८ ई० में आरम्भ होने वाले सम्वत् को कुछ वर्ष पूर्व तक नया शक सम्वत् नाम से जाना जाता रहा है। अब १६५५ में भारत सरकार ने शक सम्वत् को पुनः शोधित कर राष्ट्रीय सम्वत् के रूप में ग्रहण किया है । अतः नये शक सम्वत् से तात्पर्य इस सुधरे राष्ट्रीय पंचांग से भी लगाया जा सकता है) से २०० वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ अर्थात् कनिष्क का प्रथम वर्ष पुराने शक सम्वत् का २०१ वर्ष है। ७८ ई० में आरम्भ होने वाला शक सम्वत् नया शक सम्वत् कहा जाता है। विद्वानों का एक वर्ग जोकि अल्बेरूनी के भारत वर्णन से प्रभावित है शकों के विनाश से शक सम्वत् का आरम्भ मानता है, जबकि दूसरा वर्ग शकों की शक्ति के चर्मोत्कर्ष के समय से शक सम्वत् का आरम्भ मानता है। अल्बेरूनी ११वीं शताब्दी के समय भारतीय लेखकों के बारे में बताता है और साथ ही यह भी सूचना देता है कि शक सम्वत् का आरम्भ प्रजापीड़क शक राजा के विध्वंश के समय से हुआ । इसी से मिलते हुये विचार उस समय के कुछ लेखकों ने भी दिये । प्रसिद्ध खगोलशास्त्री भास्कर ने ग्रहगणिता में लिखा है : कलि के ३१७९ वर्ष बीतने पर शक राजा की मृत्यु हुयी । सिद्धान्त शिरोमणी के लेखक श्रीपति के अनुसार शक काल की समाप्ति पर कलि के ३१७६ वर्ष बीत चुके थे। ब्रह्मगुप्त, वात्यवारा आदि ने भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं। इन सभी विचारकों के विचार उस कथा से मिलते हैं जो अल्बेरूनी' ने शक राजा के सम्बन्ध में दी है। अल्बेरूनी के अनुसार शक सम्बत् विक्रम सम्वत् से १३५ वर्ष बाद आरम्भ हुआ तथा शक राजा जो प्रजापीड़क व अत्याचारी था, को विक्रमादित्य द्वारा मार दिये जाने पर इस सम्वत् का आरम्भ हुआ। परन्तु इस सिद्धान्त की आलोचना इसीलिए की जाती है कि शक सम्वत् का आरम्भकर्ता स्वयं शक राजा था, शक राजा को परास्त करने वाला नहीं । विक्रमादित्य ने विक्रम सम्वत् का आरम्भ किया शक सम्वत् का नहीं। अल्बेरूनी ने अपने कथन में शक व विक्रम सम्वत् के संस्थापकों के अन्तर को स्पष्ट करते हुए लिखा है : "वे जिजेता का श्री लगाकर स्वागत करते हैं तथा उसे श्री विक्रमादित्य कहते हैं जो सम्वत् कहलाता है। (विक्रम सम्वत्) उसके और शक के मारे जाने के बीच लम्बा अन्तराल है। इसीलिये १. अल्बेरूनी, "मल्बेरूनी का भारत", अनुवादक रजनीकांत, इलाहाबाद, मार्च १६६७, पृ० २६६-६७ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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