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________________ ८८ भारतीय संवतों का इतिहास प्रयोग हुआ परन्तु जनमानस में इसका प्रचार नहीं हुआ और इन्हीं कारणों से यह भारतीय इतिहास में कोई स्थान न पा सका तथा शीघ्र लुप्त हो गया । कलैण्डर सुधार समिति ने सैल्युसी डियन सम्वत् की भांति इसे भी भारतीय सम्बतों में नहीं गिना है। विक्रम सम्वत् हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठानों में मुख्य स्थान पाने वाला सम्वत् विक्रम सम्वत् है। इसे कृत सम्वत्, मालव सम्वत्, मालव काल अथवा मात्र सम्वत् के नाम से भी जाना जाता है। सम्बत् के नामों में इस प्रकार का परिवर्तन कब और कैसे हुआ ? विक्रम सम्वत् का अभिलेखों में प्रयोग किस प्रकार किया गया? सम्वत् की गणना पद्धति उसकी मुख्य इकाईयां, विस्तार क्षेत्र तथा लोकप्रियता आदि तथ्यों को ही इस अध्याय में अध्ययन करने का प्रयास किया गया है और अन्त में, क्या विक्रम सम्वत् को राष्ट्रीय सम्वत् माना जा सकता है, इस प्रश्न का विवेचन किया गया है । किसी भी वंश के संस्थापक से उस वंश की शक्ति को चर्मोत्कर्ष पर पहुंचाने वाला व्यक्ति अधिक महान होता है। विभिन्न वंश जब अपने चर्मोत्कर्ष पर थे, तो उनके शासकों ने इस घटना को महत्व प्रदान करते हुए सम्वतों की स्थापना की । विक्रम सम्वत् भी एक ऐसा ही सम्वत् है । भारत में अनेक सम्वतों का प्रचलन रहा किन्तु इन सभी के बीच जीवित रहकर विक्रम सम्वत् ने सर्वाधिक जीवनी शक्ति प्रदर्शित की है। यह आज भी भारत के बड़े भू-भाग पर प्रचलित है। अनेक शताब्दियों से प्रशासनिक कार्यों में इसका प्रयोग बन्द कर दिये जाने पर भी भारतीयों के धार्मिक व सामाजिक कार्यों में यह अबाध गति से प्रचलित है। स्वतन्त्र भारत सरकार द्वारा शक सम्वत् को सरकारी सम्वत् स्वीकार कर लिये जाने पर भी विक्रम सम्वत निरन्तर प्रचलित है। विक्रम सम्बत् का वर्तमान प्रचलित वर्ष २०४६ है जो इसाई सम्वत् १९८६-६०, शक सम्वत् १९११, हिज्री सम्वत् १४०६-१०, बुद्ध निर्वाण सम्वत् २५६२, महावीर निर्वाण सम्वत् २५१५-१६ के बराबर है। इससे व्यतीत वर्षों का सरलता से अनुमान लगाया जा सकता है। परन्तु आरम्भ से ही सम्वत् को विक्रम सम्वत् नाम न दिये जाने के कारण इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक धारणाएं प्रचलित रही हैं तथा विभिन्न विद्वानों ने विक्रम सम्वत् की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम फर्गुसन के विचार को लिया जा सकता है। उनका मत है कि विक्रम सम्वत् की स्थापना ५४५ ईस्वी में हुयी। उनके अनुसार, "उज्जयिनी के विक्रमादित्य ने हणों के विरुद्ध
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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