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________________ शीलोपदेशमाला. अनुमोदवानो उत्सर्ग अपवादे निषेध कस्यो बे; कारण के, राग द्वेष विना ते मैथुननाव उत्पन्न थतो नथी. वली ते राग द्वेष संसारना मूलमा स्थंन समान . कयु के- जो राग द्वेष न होय तो पुःख कोण पामे ? कोना सुखमां विस्मय थवाय अने कोण मोद न पामे ? श्रर्थात् राग द्वेषरहित पुरुषो उःख पामता नथी, कोश्ना सुखमां श्राश्चर्य पामता नथी थने मोदने पामे .॥७॥ हवे उपसंहार कहे जे. ततः सकलेतरकष्टानुष्ठानसमुद्यमं परिहत्य तो सयलश्यरकहा-हाणसमुङमं परिदरे ॥ एकमेव शीलवतं धारयत स्वाधीनसकलसुखं । श्कंचिये सीलँवयं, धरेद साहीणसयलसुदं॥२॥ शब्दार्थ- (ता के० ) ते कारण माटे, हे नव्यजीवो ! (सयल के०) सर्व एवा (श्यर के०) शीलवतथी बीजा (कहाणुहाण के०) कष्टना अनुष्ठानना (समुघमं के०) म्होटा उद्यमने (परिहरेउं के) त्याग करीने (साहीण के ) पोताने वाधीन रह्यं ने (सयलसुहं के०) सर्व प्रकारचं सुख जेमां एवा अने (कंचिय के०) एकज एवा (सीलवयं के) शीलव्रतने (धरेह के०) धारण करो. ॥ ॥ ___ विशेषार्थः- ते कारण माटे हे जव्य प्राणियो! घणाज तीत्र एवा बीजा सर्व प्रकारना तप करवाना अनुष्ठानना उत्साहने त्याग करीने जेमां पोताने खाधीन एवं स्वर्ग अने मोदनुं सर्व प्रकारचं सुख रहेQ बे, एवा एक शीलवतनेज पालो. अर्थात् बीजा व्रतनी अपेक्षा न करतां वतने धारण करो के, जेथी बीजा बहु व्रतोथी मेलवी शकाय सारथी प्राप्त थशे. ॥ २० ॥ पण स्त्रीना संसर्गथी मोद जता अटके डे ते कहे . और निरवद्यरुजवोऽपि जगति सजा निरवऊँनजुआवि जए॥ ___HAधीराणां शिवमार्गाः ग्गा धीरोण सिवम॑ग्गा॥२॥ 'करवा, करावका र जगवानोए साच अने अनुमोदवा तथा मैथुनना
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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