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________________ ४४५ प्रशस्ती. शकक्षितिपबोधकृत्प्रनुजिनप्रजोऽनुग्रहा त्ववाप्तगणनृत्पदप्रमुखतत्वविद्यागमः ॥ ए॥ अर्थ- ते गुणशेखरमुनिना बे चरणकमलने विषे मररूप ते श्रीसंघतिलकगुरु हवणां गबना राजा जयवंता वर्ते बे. श्रीजिनेश्वर प्रजुनी कृपाथी शक राजाने बोध करनारा ते श्री संघतिलकगुरु गणधर पद पामवा विगेरे तत्वविद्याना पार पामेला थया हता.॥ ए॥ (आर्यावृत्तम् ) तत्पादपद्महंसो, विवृत्तिं शीलोपदेशमालायाः ॥ श्रीसोमतिलकसूरिः, श्रीशीलतरंगिणीं चक्रे ॥ १० ॥ अर्थ- ते संघतिलक गुरुना चरणकमलने विषे हंस सरखा श्रीसोमतिलकसूरि थया के, जेमणे शीलोपदेशमालानी शीलतरंगिणी ना. मनी टीका करी ॥१०॥ (स्रग्धरावृत्तम् ) । लालासाधोस्तनुजः प्रगुणगुण निधिः साधुसेढानुमत्या, बानूः शीलोपदेशस्त्रजममलधिया सूत्रतोऽधीत्य सम्यक् ॥ अर्थ विज्ञातुमस्यायुगनिधिसरवो वत्सरे विक्रमांके, वृत्तिं नव्यां स विद्यातिलकमुनिवरात्कारयामास साधुः ॥ ११ ॥ अर्थ- लालासाधुना पुत्र, बहु गुणोना नंडार एवा गजू नामना साधुए सेढ मुनिनी अनुमतिथी निर्मल बुद्धिवडे था शीलोपदेशमालानी मूल गाथानो सारी रीते अभ्यास करीने तेनो अर्थ जाणवा माटे विक्रम संवत १३ए४ मां बीजी विद्यातिलक मुनि पासे था शीलोपदेशमालानी नवी टीका करावी .॥ १९॥ (उपजातिवृत्तम् ) प्रमाददोषादथ बुद्धिमांद्यानास्त्रे निबकं यदयुक्तमत्र ॥ मेधावतामंजलिरेष बद्धः, प्रसद्य ते तन्मयि शोधयंतु ॥ १५॥ अर्थ- प्रमादना दोषथी अथवा बुद्धिना जाड्यपणाथी था शास्त्रमा जे कांश अशुद्ध लखायुं होय तो हुं बुद्धिमान् पुरुषोनी पासे हाथ जोडं बुंके, जेथी तेमणे प्रसन्न थर म्हारी बेलोने सुधारी लेवी. ॥ १२ ॥
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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