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________________ ४४‍ शीलोपदेशमाला. वे ग्रंथ समातिमां ग्रंथकार पोताना नाम गर्जित मंगल आशिष कहे. कृतां एनां इति जयसिंहमुनीश्वर विनेयजयकीर्तिना श्ये जयसिंह मुणी सर - विनेयजय कित्तिणा कैयं ऐयं ॥ शीलोपदेशमाला आराध्य खजध्वं बोधसुखं शीलोवएसमालं, खारादिय लदद बोदिमुँहं ॥ ११४॥ 50 शब्दार्थ - हे जव्योजनो ! ( इय के० ) ए प्रमाणे (जह सिंहमुनी सर ho ) श्री जय सिंह नामना मुनीश्वरना ( विनेय के० ) विनयवंत शिष्य एवा (जय कित्तिणा के० ) जयकीर्तिमुनिए ( कयं के० ) रचेली एवी (एयं के० ) था ( सीलोवएसमालं के० ) शीलोपदेशमालाने ( श्राराfor ho) खाराधीने (बोहिसुखं के०) बोधिसुखने ( लहद के० ) पामो. विशेषार्थ - हे नव्यजनो! तमे ए प्रकारे श्री जय सिंह मुनीश्वरना विनयवंत शिष्य जयकीर्ति मुनिए रचेली या शीलोपदेशमालाने धाराधीने अथवा तो शीलना उपदेशरूप पुष्यनी मालाने धारण करीने स मतिथी प्राप्त थता एवा मोक्षसुखने पामो ॥ ११४ ॥ अथ प्रशस्तिः विद्यासत्रं पवित्रं प्रथितगुणगणानेकपात्रं प्रतिष्टासिद्धांताम्नाय सिंधुर्निरवधिनिरहंकारतारत्नखानिः ॥ विश्वजाय द्विहारोद्यमनवमरसप्रोद्यडुद्दाम कीर्तिनिर्देशः सन्महिम्नां जगति विजयते रुद्रपल्लीयगछः ॥ १ ॥ - विद्या पवित्र स्थान, प्रसिद्ध एवा अनेक गुणोनुं पात्र, करवा योग्य कार्यना सिद्धांतना उपदेषनो समुद्र, अंतरहित निरनिमानरूप रत्नोनी खाण, चारे तरफ जागता विहारना उद्यमरूप नवमा रसे करीने देदीप्यमान कीर्तिवालो ने उत्तम महिमाना स्थानरूप रुद्रपल्ली गठ जगत्मां विजयवंत वर्तो ॥ १ ॥ चांद्रे कुलेऽभून्मुनिचक्रवर्ती, गुरुः क्रमेणाश्रजयदेवसूरिः ॥ निधानवद्येन नवांगवृत्तिर्नवीकृता निर्हुतडुःखमेण ॥ २ ॥ अर्थ - चंद्रकुलने विषे मुनिमां चक्रवर्ती एवा अजय देवसूरि गुरु
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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