SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ყმ शीलोपदेशमाला. के, " या प्रकारनी कलानो पात्र या यावा कार्यमां योग्य नथी. शं चिंतामणि रत्न बकरीना गलाने विषे बांधवो योग्य बे ?” आवो विचार करीने सार्थवादे तेने काननां कार्यमां जोड्यो; तेथी ते त्यां काम करवा लाग्यो. कचुंबे के चाकरो हमेशां परतंत्र होय ते. पठी लक्ष्मीने वश्य करवामां औषधरूप एवो ते सर्वने विश्वासपात्र थयो ने विनीतक एवा नामी प्रसिद्ध पण थयो. "आ सर्व गुणनो पात्र बे. एवी जो राजाने मालम पमशे तो ते आने पोताने त्यां लइ जशे . " एवं धारीने शेठे ते विनीतकने पोताना घरनुं सर्व कार्य सोंप्युं ने पोतानुं इष्टकार्य करनारा एवा तेने पोताना पुत्रथी पण अधिक मान्यो. कथं वे केगुणो कोने मान श्रापनारा नथी यता ? अर्थात् सर्वने थाय बे. सर्व प्रकाना कार्य करनारो, विनीत ने सत्यरूप धननी संपत्तिवालो ते विनी - तक अनुक्रमे सर्वने विश्वासपात्र थयो. एक दिवस गोखमां उजेली धनश्रीने जोइ कामदेवयी अत्यंत पीडा पालो तला सर्व विश्वने धनश्रीमय देखवा लाग्यो पढी कामी एवा तेणे निरंतर धनश्रीनी पासे रहेनारा विनीतकने प्रार्थनापूर्वक तेनी पासे मोकल्यो. विनीतके पण अवसर मलवाथी तलारे कडेला समाचार धनश्रीने का. कयुं बे के बीजानी वस्तुने ग्रहण करवानी इछावाला धूर्त पुरुषो शीशी चेष्टा नथी करता ? अर्थात् सर्व प्रकारनी चेष्टा करे a. पी सती धनश्रीये पोतानुं मस्तक धूणावतां धूणावतां तेने कयुंके, " हे विनीतक ! तुं मने प्राणथी वधारे वहालो बे; परंतु या संदेशो लावारूप कर्म थी तो जयंकर शत्रु जेवो यइ पड्यो बे. कारण म्हारा शीरूप मणिने तुं दूषित करवानी इछा करे बे. में मन, वचन छाने का या करीने तेने पति मानेलो बे के माता पिताए सर्वनी साक्षीमां मने जे समुद्रदत्त सोंप्ये बे. " , “ धनश्रीनां यावां वचन सांजली मनमां दर्ष पामेला विनीतके कयुं. 'हे नये ! जेम कृपण माणस धनने वृथा हारी जाय बे, तेम तुं पण पोतानुं जीवित शा माटे वृथा हारी जाय बे ? जेने विषे तुं श्रासक्त थइ इती ते तो तने त्यजीने चाल्यो गयो बे के जेनी शुद्धि पण लागती नथी; माटे हवे तो तुं तेनामाटे वृथा जीवित दारी जाय बे. " धनश्री ये
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy