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________________ प्रदेशी राजानी कथा. ३ए ति करनारो थाय; तो तेणे श्रापेला था प्रधान पदरूप प्रसाद- म्हारे माथे कण रही जाय. तो कुपुत्रनी पेठे तेम केम थाय ? माटे को उपायथी एने गुरुनी वाणी संजलावं.” एवो विचार करीने ते बुद्धिवंत प्रधान राजाने अश्व खेलाववाना मीषथी उद्यान तरफ लश् गयो. राजा अश्व खेलाववाथी थाकी गयो एटले एक वृदनी नीचे गयामां बेठो. त्यां ते गुरुनी देशनानी वाणी सांजली रोगी माणस जेम वीणानो शब्द सांजली उछेग पामे तेम उद्वेग पामवा लाग्यो; तेथी तेणे मुख मरडीने चित्र प्रधानने पूज्यु. “ रोगथी पीडाता माणसनी पेठे श्रा कोण रस विनानी वाणी बोले ? " प्रधाने कयु. “ हुँ जाणतो नथी. चालो जश्ने निश्चय करीये के ते कोण ?” एम कहीने प्रधान राजाने केशी गणधरना आश्रमनी पासे ले गयो एटले राजा त्यां एक बाजुये उनो उनो देशना सांजलवा लाग्यो. केशी गणधर देशना आपे डे के- “ हा हा! नाना प्रकारना योग्य अर्थथी मधुर एवा तत्वने न जाणनारा मूर्ख जीवो अश्रद्धाथी पोताना जीवीतने मिथ्या हारी जाय . वली मीथ्या कदाग्रहथी नरकना अतिथिपणाने पामे के; परंतु तत्वनो आश्रय करीने शुन एवी अर्ध्वगति पामता नथी !!! " अमे अधिपति (राजा) बीए.” फक्त एटलुंज बोलनारा अज्ञानी जीवो अन्य वस्तुना प्रमाणने अप्रमाणने तथा निषेधने कही शकवाने पण समर्थ थता नथी अने योगी पुरुषतो प्रत्यक्षपणाथी अथवा अनुमानथी पोताना आत्मानी साथे बीजा माणसोना आत्माने सरखावे . श्छा, वेष अने प्रयत्नादि दृष्टिथी देखी शकाता नथी, तो पण यंत्रथी निर्मुक्त थयेली (चिंचोडा. मां पीलाइ गयेली) शेरडीनी पेठे तेमांथी चैतन्य जतुं रहेतुं नथी. जो के जीवने विषे ज्ञान अने विज्ञान- तारतम्यपणुं श्ष्ट बे; तो पण तेना जोया विना कोना चित्तने विषे नाव नथी रहेतो? नेत्रथी फलादिक जोयां पण खाधां विना तेना रसनो खाद कोनाथी जाणी शकाय ? श्रर्थात् कोश्थी न जाणी शकाय. तेमज इंडियोथी जूदो एवो कोश् श्रव्यक्त दर्शी पुरुष के. जे योग्य एवा रसना स्वादने (मोदादि सुखना स्वादने) अहिं वारंवार स्मरण करे जे. वली तेणे वृछादि अवस्थामा परिमाणना नेदयी स्मृतिनो योग ते होवाने सीधे को गुप्त कर्ता अनुमान
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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