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________________ शएश शीलोपदेशमाला. कर्तुं . हवे धिक्कार ने था म्हारा निरर्थक राज्यने, सर्व संपत्तिने श्रने जुजबलने के, जे म्हारी प्राणप्रियानुहरण थयुं !!!जे कोश म्हारी प्रियानी शोध लावी श्रापशे; तेने हुँ थर्ड राज्य थापीश." था प्रमाणे पडह वगमावीने वली ते शोक करवा लाग्यो के, “ हाय ! हाय ! हुं जीवतो बतो मूवा सरखो बूं; कारण जेम जंघी गयेला माणसना माथा उपरथी मुगटनी चोरी थाय तेम म्हारी प्रियानी चोरी थ .” श्रावी रीते पोताना जुजबलनी निंदा करतो अने गुप्त क्रोधवालो ते रतिवहन उषधि श्रने मंत्रथी स्तंजित करी दीधेला सर्पनी पेठे मनमांज बलवा लाग्यो. हवे कमलानु हरण थया पांच मास पूरा थया; एवामां प्रियाना शोकथी व्याप्त एवा ते रतिवन राजाना उद्याननेविषे जाणे बीजा सूर्य होय नहिं ? एवा केवलज्ञानी मुनि समवसख्या. जेम वर्षाद श्राववाथी खेरु लोक हर्ष पामे एम मुनिना श्राववाथी हर्षित थयेला रतिवन राजाए तेमनी पासे जश्वैराग्य करनारी धर्मदेशना सांजली. देशनाने अंते राजा ए मुनिने पूब्युं के, “हे प्रनो! म्हारी प्रिया जीवती ने के मृत्यु पामी?" केवलज्ञानी मुनिए सर्ववृत्तांत यथार्थ कडं एटले फरी राजाए पूज्युं. "हे लगवन् ! था कया कर्मनुं फल प्राप्त थो? अने हवे ते स्त्री जीवती मने फरीश्री मलशे के केम?” केवलज्ञानी मुनिए कडं. - हे राजन् ! विस्मय नामना नगरमा पुर्जय नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने धन्या नामनी स्त्री हती. एक दिवस धन्याए क्रोध करीने पोतानी दासीने दोरडीवती बांधीने नूखी अने तरसी नोंयरामां पूरी दीधी. पड़ी थोडे दिवसे प्रसन्न थयेली धन्याए तेने बंधनथी गेमी दीधी. दासीने बांधी राखवाथी धन्याए महादारुण कर्म उपार्जन कलुं. पली अनेक गतिमां ते दारुणकर्मनुं फल जोगवीने हवणां ते धन्या त्हारी स्त्री कमला थ . तेने आ बेबी वखतनुं बंधन थयुं . वली तेणे पूर्वजवने विषे जे त्रण माससूधी पंचमीनो तप कस्यो बे; तेथी ते बंधनथी मुक्त थशे. पनी ते निश्चय तने मलशे; कारणके जोगवेला कर्म तुरत य पामे .” मुनिनी आवी कतकचूर्णनी पेठे प्राणीउँने निर्मल करनारी धर्मदेशना सांजली घणा जव्य जीवो पापरूप कादवथी मूका गया.
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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