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शीलोपदेशमाला. व्यु बे; तेवी रीते नव्य जीवोए पण निष्कपटपणाथी शीलवतने पालq.
इति श्री रुउपलिय गठमां नहारक श्री संघतिलक सूरिनी पाटे श्राजरणरूप सोमतिलक सूरिए रचेली शीलोपदेश मालानी टीका शील. तरंगिणीमां श्री महिनाथ प्रजु, चरित्र समाप्तम्.
____ हवे चारित्रनुं दृढपणुं कहेले. सः जयतु स्थूलनमः आश्चर्यकारिचरितपरिकरितः सो जैयन यूलनदो, अनेरेयकारिचरियपरिअरि॥ यस्याद्यापि ब्रह्मव्रते जगति वाद्यते ययढक्का जस्सङवि बनवए, जयंमि वैऊ जयंढक्का ॥४१॥
शब्दार्थः- (अछेरयकारि के ) आश्चर्यकारी एवा ( चारियपरिवरित के० ) शीलवतरूप चारित्रे करीने सुशोनित थएला ( सो के०) ते ( थूलजद्दो के० ) स्थूलनप्रजेते ( जयन के० ) जयवंता वत्तों; कारण के, ( जयंमि के०) था जगत्ने विषे ( जस्सङ वि के०) जे स्थूलजनो श्राजसुधी पण (बंजवए के०) ब्रह्मवत पालवाने विषे श्रर्थात् शीलवत पालवाथी उत्पन्न थएलो ( जसढक्का के०) जयनो ढोल (वजा के० ) वागे . ॥४१॥
विशेषार्थः-प्रथम बार वर्षसुधी जोगवेली कोश्या वेश्याना घरने विषे रहीने षट्रस नोजन करता सता पण जे श्राश्चर्यकारी शीलवत रूप चारित्रथी सुशोजित थया बे, एवा थार्यसंचूति श्राचार्यना शिष्य ते स्थूलना जयवंता वत्तॊ; के जे शकटाल मंत्रिना पुत्र स्थूलजनो कामदेवनी सेनाने जीतवारूप विजयनो ढोल घणां वर्ष वीत्यां सतां आजसुधी पण था जगतने विषे वागी रह्यो . ॥४१॥
_ स्थूलजनी कथा.. श्रा नरतखंडने विषे पाटलीपुर नामर्नु नगर जे. जे नगरना चैत्यो उपर रहेला सुवर्णना कलशो रात्रीए सूर्यनी ब्रांति करता हता. ते नग. रमां, जेनी कीर्ति रूप नर्तकी नव खंडमां नृत्य करी रही हती, एवो प्रजाने थानंद पमाडनारो नंद नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने शक