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________________ १२७ शीलोपदेशमाला. हवे बीजे दीवसे नेमिनाथ महाराजे वरदत्त ब्राह्मणने घेर खीरथी बहनुं पार| कऱ्या; तेथी देवताए ते ब्राह्मणने घरे पुष्पनी अने सुवर्णनी वृष्टि करी तथा जय जय शब्द कस्यो. तेमज देवडुनि पण वागवा लाग्या. पली नगवान् चोपन दीवस सुधी विहार करी फरीने पाना गीरनार पर्वतनी पासेना आम्रवनमां वेतस वृदनी तले श्राव्या. त्यां थाशोवदी अमांस श्रने चित्रा नदत्रमा सवारे प्रजुने केवल ज्ञान उत्पन्न थयु. इंग्नुं श्रासन कंपवा लाग्यु; तेथी इंस्रो अवधिज्ञानश्री प्रनुने केवल ज्ञान उत्पन्न थडे जाणीने त्यां आव्या अने त्रीगडा गढथी समवसरणनी रचना करवा मांडी. दरेक शालामा धुपनी घटी, तोरण, ध्वजा, अने वाव्यो रची. मध्यशालामा अशोक वृद रच्यु. तेनी नीचे रत्नजडित सुवर्णतुं सिंहासन कयु. सुवर्णना कमल उपर पग मूकता मूकता पूर्वधारमांथी समवसरणमां श्रावी श्रीनेमिनाथ महाराज “तीर्थायनमः” एवो उच्चार करीने सिंहासन उपर बीराज्या, एटले देवताए त्रणे बाजु सिंहासन उपर त्रण प्रतिमा स्थापन करी. उद्यान पालके छारकामा जश्ने कृष्णने वधामणि दीधी, तेथी कृष्णे तेने साडाबार क्रोड रुपियानी वधार आपी. पली कृष्ण अंतःपुर अने परिवार सहित अनेक यादवाने साये लश् प्रजुने वांदवा माटे गीरनार उपर श्राव्या. जमरी जेम मालतीने मलवा जाय तेम हर्षित मनवाली राजीमती पण त्यां श्रावी. पनी संसार रूप कुवामां पडेला माणसोने दोरडी सरखी नगवाननी धर्मदेशना सांजली वरदत्त राजाए प्रनुपासे व्रतनी प्रार्थना करी; तेथी नगवाने बे हजार राजकुमार सहित वरदत्त राजाने तथा अनेक कन्या सहित राजीमतीने महोत्सवपूर्वक दीक्षा दीधी. जन्म थीज प्रजुना चरण कमल सेववाने मनवाली राजीमतीने जाणीने कृ ष्णे तेनुं कारण पूब्यु एटले प्रजुए धन अने धनवतिना प्रथम जवथी नवे नवनी वात कही संजलावी. पड़ी तेमणे स्थापन करेला वरदत्त विगेरे अग्यार गणधरोए त्रीपदीने पामीने सूत्रना बार अंगो रच्यां. दाशाहे अने उग्रसेने प्रद्युम्न विगेरे पुत्रोसहित श्रावकधर्म श्रादस्यो तथा रामे श्रने कृष्णे सम्यक्त्व व्रत लीधुं. तेमज शिवादेवी, रोहिणी, १ उपन्नेवा, विगमेवा, घुवेवा.
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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