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________________ ८३ १२. अत्थइ -अच्छर ए खरु अपभ्रंश छे. प्रो. हीरालाल, अच्छा वांचे छे. १४-१५. तमेव धीरो विज्ञाय प्रज्ञां कुर्वीत ब्राह्मणः । नानुध्यायान्बहूञ् शब्दान् वाचो विग्लापनं हि तत् ॥ बृहदारण्यकोपनिषद् ४, ४, ५. अहिं एक अक्षरनो उल्लेख छे ते ॐ छे. सरखावो ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन् मामनुस्मरन् । यः प्रयाति त्यजन् देहं स याति परमां गतिम् ॥ भ.गी. ८.१३. २५-२६. जेओ वादविवाद करे छे, जेमनी भ्रान्ति तूटी नथी अने जे पोताना आत्माने भ्रान्त करे छे, ते जुगुप्सित ( = भ्रान्त ) थाय छे. प्रो. हीरालाल रत्ता वांचे छे, परंतु ते पाठ अत्ता होवा वकी छे. ॥ नवममुद्धरणम् ॥ १. कवि अने तेनुं जोवनः आ उद्धरणना त्रण आधार छे. (१) भांडारकर इन्स्टीट्युटनी हाथप्रत (२) प्रो. उपाध्येनो जोइंदु परनो लेख अने (३) प्रो. हीरालाल जैने संपादित करेली 'सावयधम्मदोहा ' नी आवृत्ति ( अम्बादास चवरे दिगंबर प्रन्थमाला - २. ). भाण्डारकर इन्स्टीटयुट पूना नं. १३०८/१८९१ - ९५ नी प्रतमां छेवटे : मूलं योगीन्द्रदेवस्य लक्ष्मीचन्द्रस्य पंजिका । वृत्तिः प्रभाचन्द्रमुनेर्महती तत्त्वदीपिका ॥ श्लोक छे. आ उपरथी जोइन्दु ना नाम हेठळ आ उद्धरण मूकयुं छे. परंतु आ काव्यना कर्ता विषे छेल्लो निर्णय नथी. प्रो. हीरालाल जैन एक प्रतिना अंतिम दोहाने आधारे अने परंपरागत कहाणीने आधारे देवसेनने आ कृतिना कर्ता तरीके गणावे छे. देवसेनने आ कृतिना कर्ता तरीके ठराववा तेओए आपेली दलीलो सबळ तो नथी. ज. गमे तेम हो, परंतु कृति दशमा अगीआरमा 'विक्रमशतकनी होवा संभव छे. उद्धरणवस्तुः वातमा अने आठमा उद्धरणमां सामान्यतः अभेदवाद अने तत्वज्ञानने लगता दुहाओ छे; ज्यारे आ उद्धरणमां श्रावकोना आचारने लगता दुहाओ छे. आ त्रणे य उद्धरणना दुद्दामां एक वस्तु खास ध्यान खेचे छे. लौकिक उक्तिओ अने दृष्टान्तोथी आ दुहाओ भरपूर छे. आ सत्य तो सामान्य वांचनारने पण प्रतीत थशे. मूळ ग्रंथमां २२८ दुहाओ छे; तेमांथी आ उद्धरणमा २४ दुहाओ देवामां आग्या छे.
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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