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________________ ( २ ) काल से लेकर आज तक की परिवर्तित भाषाओं पर ध्यान देने से इस बात की पूर्ण पुष्टि हो जाती है। नीचे कुछ दृष्टान्त दिये जाते हैं- संस्कृत के 'ग्राम' तथा 'मध्य' दो शब्दों के मिलने से 'ग्राममध्य' एक शब्द बना । अब इसी शब्द का उच्चारण करते समय एक अशिक्षित आदमी, जिसे उच्चारण का ज्ञान नहीं है और जो स्वभाव से ही कष्टसाध्य उच्चारण करना नहीं चाहता, जीभ को कष्ट से बचाने के लिए एक विलक्षण ही शब्द-स्वरूप का जनक हो जायगा। वह उक्त शब्द के मध्य के स्थान में 'मज्झ', 'माझ', 'माध', 'माह', 'मह', 'मा' और 'मे' तथा ग्राम शब्द के स्थान में 'गाम' और 'गांव' कहेगा। इस प्रकार ग्राममध्य के स्थान में 'गाम में' और 'गांव में' बन गया। इसी प्रकार 'कुम्भकार' के स्थान में 'कुम्भार', 'कुंहार' और 'कोहार' शब्द बन गये । इनके अतिरिक्त मुख = मुह, अर्प= अप्प (हि०-आप); यष्टि = लट्ठी, लाठी; द्वादश = बारह आदि अनेक शब्द हैं । कभी-कभी तो शब्दों का परिवर्तन इतना हो जाता है कि उनका पता लगाने में बड़े-बड़े शब्दशास्त्रियों को भी चक्कर खाना पड़ता है। जैसे अंग्रेजों के समय में राजकीय कोषागार के प्रहरी 'हू कम्स देअर' (Who comes. there ) के स्थान में 'हुकुम दर' कहते थे । तात्पर्य यह कि किसी किसी शब्द के शुद्ध रूप का पता लगाना असम्भव सा हो जाता है । अस्तु । प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के विषय में भारतीय वैयाकरणों तथा आलङ्कारिकों का कथन है कि इस भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। संस्कृत ही इसकी जननी है। प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति 'प्रकृति' से की जाती है। प्रकृति शब्द का अर्थ बीज अथवा मूल तत्त्व है। इस शब्द का निर्वचन है-'प्रक्रियते यया सा प्रकृतिः' अर्थात् जिससे दूसरे पदार्थों की उत्पत्ति हो । 'मूलप्रकृतिरविकृतिः' (साङ्ख्य ) अर्थात् मूल प्रकृति अविकृत रहती है। सारांश यह हुआ कि 'प्रकृति' उसे कहते हैं जो दूसरे पदार्थों का उत्पादक तथा स्वयं अविकृत हो । यहाँ
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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