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________________ षष्ठ अध्याय १२५ । अन्त में णकार का आगम होता है और इनके दीर्घ स्वर का ह्रस्व होता है । जैसे :- चिणइ, जिणइ, हुणइ, लुणइ इत्यादि । (२३) भाव और कर्म अर्थ में वर्तमान च्यादि धातुओं के अन्त में द्विरुक्त व (व्व) का आगम विकल्प से होता है । जैसे :- चित्र, चिणिज्जइ ( चीयते ) इत्यादि । (२४) भाव और कर्म अर्थ में वर्तमान चित्र, हन और खन धातुओं के अन्त में द्विरुक्त म (म्म ) का आगम विकल्प से होता है एवं यक का लोप होता है । हन धातु के विषय में कर्ता अर्थ में भी द्विरुक्त म (म्म ) होता है । जैसे :- चिम्मइ, हम्मइ ( चीयते, हन्यते ) विशेष – शौरसेनी में यह नियम प्रवृत्त नहीं होता है । (२५) भाव और कर्म अर्थ में वर्तमान दुह, लिह, वह और रुध धातुओं के अन्त्य में द्विरुक्त म ( म्म अथवा किसी-किसी के मत से भ) विकल्प से होते हैं, यक का लोप भी होता है । जैसे :- दुब्भइ, दुहिज्जइ (दुह्यते ) इत्यादि । (२६) भाव और कर्म में वर्तमान गमादि धातुओं के अन्त्य वर्ण का द्वित्व विकल्प से होता और यक का लोप भी होता है । जैसे :- गम्मइ, गमिज्जइ, हस्सइ, हसिज्जइ ( गम्यते, हस्यते ) विशेष – नीचे लिखे धातु नीचे लिखे अनुसार विशेष नियमों का अनुसरण करते हैं :-- सं० धातु दह वध सं+रुध अनु + रुध भावकर्म में प्रा० डाइ, डहिज्जइ इ, वंधिज्ज संरुब्भइ, संरुधिज्जड अण्णरुब्भइ, अणुरुधिज्जइ भावकर्ममें सं० दह्यते वध्यते संरुध्यते अनुरुध्यते
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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