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________________ १२४ प्राकृत व्याकरण और 'इ' होते हैं। जैसे :-हसेऊण, हसीऊण ( हसित्वा); हसेउ, हसिउं ( हसितुम् ); हसेअव्वं, हसिअव्वं (हसितव्यम् ); हसेहिइ, हसिहिइ ( हसिष्यति) विशेष-उक्त नियम अदन्त धातुओं को छोड़ अन्य धातुओं में लागू नहीं होता । जैसे:-काऊण ( कृत्वा) (१७)क्त प्रत्यय के पर.में रहने पर धातु के अन्त्य 'अ' का 'इ' होता है । जैसे :-हसिअं, पठिअं ( हसितम, पठितम् ) (१८) ण्यन्त धातु के णि के स्थान में अत , एत, आव और आवे ये चार आदेश होते हैं। (१६) भाव और कर्म अर्थ में विहित क्त प्रत्यय के पर रहने पर णि का लुक और (पर्यायेण लुगभाव होने पर ) 'अवि' ‘आदेश होते हैं । णिच् के पर में रहने पर भ्रम धातु के स्थान में विकल्प से 'भमाड' आदेश होता है। जैसे :-कारिअं, करावि (कारितम् ); सोसिअं, सोसविझं (शोषितम् ); तोसिआ, तोसविरं (तोषितम् ); कारीअइ, कराविअइ, कारिजइ, कराविजइ (कार्यते); भमाडइ, भमाडेइ, भामेइ, भमावइ (भ्रामयति) धात्वादेशसंबंधी नियम(२०) व्यञ्जनान्त धातु के अन्त्य व्यञ्जन के आगे अ आकर मिलता है । जैसे :-हसइ (हसति) इत्यादि । (२१) अकारान्त धातुओं को छोड़कर अन्य स्वरान्त धातु के अन्त में अकार का आगम विकल्प से होता है । जैसे:'पाइ, पाअइ इत्यादि । (२२) चि, जि, हु, श्रु, सु, लू , पू और धू धातुओं के
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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