SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पार्श्वनाथ भगवान बिराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा वि.सं. 1306 वैशाख सुद 3 शनिवार के दिन आ. प्रद्युम्नसूरि महाराज साहेब की मुख्य परंपरा में श्री देवसूरि के शिष्य श्री जयानंद महाराज साहेब ने की थी। इस जिनालय के मध्य के मंदिर का रंगमंडप 29.5 फुट चौडा और 53 फुट लंबा है, तथा आसपास के दोनों जिनालय के रंगमंडप 385 फुट समचतुष्ट हैं। मुख्य जिनालय की बायीं ओर के जिनालय में समचतुष्ठ समवसरण में चतुर्मुखी भगवान बिराजमान है, जिसमें तीन प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ भगवान की वि.सं. 1556 के साल के और चौथी प्रतिमा श्री चन्द्रप्रभस्वामी भगवान की वि.सं. 1485 की साल के उल्लेख वाली है। दायीं तरफ के जिनालय में गोलमेरु के ऊपर चतुर्मुखी भगवान बिराजमान हैं जिसमें पश्चिमाभिमुख श्री सुपार्शवनाथ, उत्तर और पूर्वाभिमुख श्री नेमिनाथ भगवान। ये तीन प्रतिमायें वि.सं. 1543 के साल की हैं। इसमें दक्षिणाभिमुखी श्री चन्द्रप्रभस्वामी भगवान की प्रतिमा बिराजमान है। इस मेरु की रचना पीले रंग के पाषाण से की गयी है। (8) गुमास्ता का जिनालय : श्री संभवनाथ भगवान (19 इंच) वस्तुपाल तेजपाल के जिनालय के पीछे के प्रांगण में उनकी माता का जिनालय है। जो गुमास्ता का जिनालय के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान है। कच्छ-मांडवी के गुलाबशाह ने यह जिनालय बनवाया था, इस कारण से यह जिनालय गुलाबशाह मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है। इसे 'वस्तुपाल की माता' का जिनालय भी कहा जाता है। (9) संप्रतिराजा की ढूंक : श्री नेमिनाथ भगवान वस्तुपाल तेजपाल के जिनालय से बाहर निकल कर उत्तरदिशा की तरफ संप्रतिराजा की ढूंक आती है। श्री चन्द्रगुप्तमौर्य के वंश में हुए अशोक गिरनार तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy