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________________ भी ऐरावत हाथी पर आरुढ़ होकर आए। उस समय प्रभु के स्नानाभिषेक के लिए ऐरावत हाथी के द्वारा भूमि पर एक पाँव से दबाकर कुंड बनाया गया था। इसमें तीनों जगत की विशिष्ट नदियों का जल आया था। उस जल से इन्द्र महाराजा ने प्रभु का अभिषेक किया था। इस जल के पान और स्नान से अनेक रोग नष्ट होते हैं। इस जल से प्रभु का अभिषेक करने से भक्त के कर्ममल दूर होते हैं और मुक्तिपद प्राप्त होता है। इस कुंड में 14 हजार नदियों का प्रवाह देवों के प्रभाव से आता है। इस कुंड के दर्शन करके कुमारपाल ढूंक की खिडकी से अंदर प्रवेश कर, श्री नेमिनाथजी की ढूंक से बाहर निकलकर पुनः ऊपरकोट के मुख्य द्वार के पास के रास्ते पर आ सकते हैं। इस मुख्य द्वार के सामने 'मनोहरभुवनवाली' धर्मशाला के कमरों के पास से सूरजकुंड होकर श्री 'मानसंग भोजराज' के जिनालय में जा सकते हैं। (6) मानसंग भोजराज का जिनालय : श्री संभवनाथ भगवान यह जिनालय कच्छ-मांडवी के वीशा ओसवाल शा. मानसंग भोजराज ने बनवाया था। इसमें मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान की सुंदर प्रतिमा बिराजमान है। इस जिनालय में जाने से पहले मार्ग में आनेवाला सूरजकुंड भी मानसंग ने ही बनवाया था। जूनागढ गाँव में आदिनाथ भगवान के जिनालय की प्रतिष्ठा भी मानसंग ने वि.सं. 1901 में करवायी थी। इस जिनालय के दर्शन करके बाहर निकलकर मुख्यमार्ग पर उत्तरदिशा की तरफ आगे जाने पर दायीं तरफ वस्तुपाल तेजपाल की ट्रंक आती है। (7) वस्तुपाल तेजपाल का जिनालय : श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान इस जिनालय में एक साथ परस्पर जुडे हुए तीन जिनालय हैं। ये जिनालय गुर्जर देश के मंत्रीश्वर वस्तुपाल तेजपाल के द्वारा वि.सं. 1232 से 1242 के समय में बनवाये गये थे। जिसमें अभी मूलनायक शामला 80 . त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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