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________________ दान से विशेष प्रकार की सेवा - भक्ति करनी चाहिए । इस गिरिराज पर गुरु को वस्त्र, अन्न और जल का दान करने से और भावपूर्वक भक्ति करने से इस लोक और परलोक में सर्व संपत्तियां प्राप्त होती हैं । शत्रुंजय गिरिराज और श्री जिनप्रतिमा, ये स्थावर तीर्थ कहलाते हैं; और सुविहित निर्ग्रन्थ गुरु महाराज, ये जंगम तीर्थ हैं; अतः इस तीर्थ पर वे भी अतिशय पूज्य है । अभय-दान, अनुकंपादान, पात्रदान, उचितदान और कीर्तिदान, तथा अन्नदान, ज्ञानदान, औषध - दान और जलदान ये सभी दान इस महातीर्थ में विशेष रूप से फलदायक हैं, ऐसा बुद्धिमान पुरुषों को जानना चाहिए। जो लोग इस महातीर्थ में दीन और अनाथ आदि को अबाधित भोजन देते हैं, उनके घर निरंतर अबाधित लक्ष्मी नाचती है। इस तीर्थ में महाबुद्धिशाली पुरुषों को महासिद्धि का निदान, ऐसा दान देना चाहिए; क्योंकि दान दिये बिना प्राणी भव-सागर को पार नहीं कर पाते । अपनी खुशी से अपने आत्मा का घात करने वाला जो पुरुष इस तीर्थ पर आकर शील का भंग करता है, उसकी किसी भी स्थान पर शुद्धि नहीं होती और वह चांडाल से भी अधम होता है | इस स्थान पर किया हुआ तप निकाचित कर्मों का लोप करता है । इस तीर्थ में यदि किसीने एक दिन का तप किया हो, तो वह भी समग्र जन्म में किए पापों का नाश करता है । और छठ्ठ, अठ्ठम आदि तप करने से इस तीर्थ में उत्तम फल मिलते हैं । इसलिए सर्व वांछित प्रदान करने वाले तप इस तीर्थ में विशेष रूप से करने चाहिए । जो इस तीर्थ में अष्टान्हिका (अट्ठाई) तप करे तो वह प्राणी कर्मरहित होकर, इच्छा नहीं करे तो भी, स्वर्ग और मोक्ष का सुख प्राप्त करता है । सुवर्ण की चोरी करने वाला पुरुष इस तीर्थ में चैत्री पूनम का एक उपवास करे तो, और वस्त्र की चोरी करने वाला शुद्ध भावना से यदि सात आयंबिल करे तो, उनकी इस तीर्थ में शुद्धि हो जाती है । रत्न की चोरी करने वाले, इस तीर्थ में अच्छी भावनापूर्वक दान कर कार्तिक मास में सात दिन के तप से स्पष्ट रीति से शुद्ध हो जाते हैं । चाँदी, कांसा, तांबा, लोहा और पीतल चोरी 40 त्रितीर्थी 1
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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