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________________ शत्रुजय गिरि पर धर्मकार्य का महाफल इस तीर्थ में श्री अरिहंत प्रभु की पुष्प और अक्षतादिक से पूजा और स्तुति की हो, तो उस पूजक प्राणी के सर्व भवों के पाप नष्ट हो जाते हैं। अन्य तीर्थ में की हुई प्रभु की पूजा की तुलना में यहाँ की हुई श्री जिनेश्वरदेव की पूजा अनंत गुणी (फलदायी) होती है। यहाँ एक पुष्प मात्र से भी जिनपूजन किया हो, तो उससे स्वर्ग और मोक्ष दुर्लभ नहीं रहते । जो पुरुष इस तीर्थ में श्री जिनेश्वर देव की अष्टप्रकारी पूजा करते हैं, वे इस लोक में नवनिधान को प्राप्त करके, अन्त में वे पूजक श्री अरिहंत के समान हो जाते हैं । श्री अरिहंतदेव की पूजा, गुरुकी भक्ति, श्री शत्रुजय महातीर्थ की सेवा और चतुर्विध संघ का समागम, इन चार वस्तुओं की साधना करने से भाग्यवान पुरुष सुकृत का सहभागी गिना जाता है। मन, वचन, काया से इस तीर्थ में जो गुरु की आराधना की हो, तो वह तीर्थंकर के पद की प्राप्ति का कारण बनती है। इस तीर्थ में जो सामान्य मुनियों की आराधना की हो तो भी उससे चक्रवर्ती की लक्ष्मी प्राप्त होती है। जो लोग यहाँ आकर अपने द्रव्य से गुरु की पूजा, भक्ति नहीं करते, उनका जन्म और सर्व संपत्ति निष्फल है। श्री तीर्थंकरों के लिए भी पूर्वभव में बोधिबीज के हेतुभूत गुरु महाराज हैं, इस कारण बुद्धिमान पुरुष के लिए गुरु महाराज विशेष रूप से पूजनीय हैं । इस महातीर्थ में धर्म संबंधी सर्व क्रिया गुरु के साथ करनी चाहिए; कारण कि, गुरु के बिना सब क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं । इसलिए ऋणमुक्त होने की इच्छा वाले पुरुषों को इस पवित्र तीर्थ में धर्मदायक गुरु महाराज की वस्त्र, अन्न, पेय आदि के शत्रुञ्जय तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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