SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायण वृक्ष की महिमा यहाँ रायण का वृक्ष शाश्वत है और भगवान् श्री ऋषभदेव प्रभु से भूषित है। इस वृक्ष में से झरती दूध की धाराएं क्षणमात्र में अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करती हैं। नाभिराजा के पुत्र श्री ऋषभदेव प्रभु का समवसरण इस पवित्र रायण के नीचे कई बार रचा गया था। इस कारण यह वृक्ष तीर्थ से भी उत्तम तीर्थ के समान वंदन करने योग्य है। इसके प्रत्येक पत्ते पर, फल पर और शाखा पर देवताओं के स्थानक हैं, इसलिये इसके पत्र, फल आदि किसी प्रमादवश भी छेदने योग्य नहीं है। जब कोई संघपति भक्ति से भरपूर चित्त से इसकी प्रदक्षिणा करता है, तब यदि यह रायणवृक्ष हर्ष से उसके मस्तक पर दूध की धारा बरसावे, तो उस पुण्यवान का उत्तरकाल (परिणामस्वरूप) दोनों लोक में (इस भव और परभव में) सुखकारी हो जाता है। और यदि वह दूध की धार न बरसावे तो ईर्ष्या के समान हर्ष का विषय नहीं है। सुवर्ण, चांदी और मोती से यदि इसकी पूजा करने का अवसर प्राप्त हो तो वह स्वप्न में आकर सब शुभा-शुभ कह जाता है। शाकिनी, भूत, वेताल और राक्षस आदि जिसके पीछे लग गए हों, ऐसा व्यक्ति भी यहाँ आकर इसका पूजन करे तो उपरोक्त सभी दोषों से मुक्त हो जाता है। इसकी पूजा करने वाले के शरीर पर एकांतर ज्वर, सर्दी का ज्वर, कालज्वर और विष का प्रभाव नहीं होता। इस वृक्ष के पत्ते, फूल और डालियां आदि अपने आप गिरे हों तो उन्हें लाकर जीव की तरह संचित कर रखना चाहिए; ऐसा करने से वह समस्त अरिष्ट (अनिष्ट) का नाश त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy