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________________ हैं। जो प्रभु की स्तुति करते हैं, वे स्वयं स्तुति के योग्य बन जाते हैं। जो दीपक जलाते हैं उनके देह की कान्ति प्रदीप्त हो जाती है। और अत्यन्त हर्ष से प्रमुदित होकर जो नैवेद्य रखते हैं (पूजा में) वे सब आनंद युक्त होकर सुख की मैत्री को प्राप्त करते हैं। आरती उतारने वालों को यश, लक्ष्मी और सुख मिलते हैं और वे आरति प्राप्त करने के बाद किसी दिन भी सांसारिक पीड़ा नहीं पाते। .. इस महातीर्थ में श्री पुंडरीक गणधर भगवंत की साक्षी में आदरपूर्वक दस प्रकार के पच्चक्खाण करने वाले पुरुष सभी मनोरथों को विघ्न रहित सफल करते हैं। जो कोई छ? तप (बेला) करे तो सर्व संपत्ति प्राप्त करता है, और अट्ठम तप (तेला) करे तो आठ कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करता है। दूसरे तीर्थ में सूर्य के बिंब पर दृष्टि जमाकर, एक पैर पर खड़ा होकर और अखंड ब्रह्मचर्य पालते हुए मासखमण करने से जो लाभ प्राप्त होता है, वही लाभ श्री सिद्धगिरि पर एक मुहूर्त मात्र के लिए सर्व आहार का त्याग करने से प्राप्त होता है। इस महातीर्थ पर राग और द्वेष युक्त प्राणी भी अहँत का ध्यान करने से निर्मल हो जाता है, और आठ उपवास करने से मनुष्य स्त्री-हत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। पाक्षिक तप करने से बालहत्या का पाप नष्ट हो जाता है, और मासखमण से ब्रह्मचारी की हत्या का पाप दूर हो जाता है। इस क्षेत्र में एकादि उपवास के पुण्य से लाख उपवास के प्रायश्चित से मुक्त हो जाता है, और अंत में मुक्ति सुख प्रदान करने वाले बोधि बीज को प्राप्त करता है। श्री जिन मन्दिर में जिन- बिंब को स्नान करवाने से, विलेपन करने से और मालारोपण करने से, अनुक्रम से सौ, हज़ार व लाख मुद्रा के दान का फल प्राप्त होता है। जिन्होंने इस श्री शतुंजय तीर्थ में आकर मुनिजनों को पूजा नहीं, उनका जन्म, धन और जीवन निरर्थक है। जो लोग जिनेश्वर देवों के तीर्थों में, जिनयात्रा में और जैन पर्वो में सुपात्र संयमी मुनियों को पूजते हैं, वे त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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