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________________ सिद्धक्षेत्र, सुतीर्थराज, ढंक, कपर्दी, लौहित्य, तालध्वज, कदंबगिरि, बाहुबलि, मरूदेव, सहस्त्राख्य भागीरथ, अष्टोत्तर शतकूट, नगेश, सप्त पत्रक, सिद्धराज, सहस्रपत्र, पुण्यराशि, सुरप्रिय और कामदायी। इनमें से जो सुप्रसिद्ध हैं, उनमें से कुछ की महिमा यहाँ कही जाती है। उन सर्वप्रसिद्ध शिखरों में मुख्य शलुंजय और सिद्धक्षेत्र हैं। मेरु, सम्मेतशिखर, वैभारगिरि, रुचकाद्रि और अष्टापद इत्यादि सभी तीर्थ इस शजय गिरि में आ जाते हैं। इस तीर्थ में रहे युगादिदेव श्री ऋषभदेव स्वामी के चरणकमल की सेवा करने से भव्य प्राणी सर्वत्र सेवा करने योग्य, जगत वन्दनीय और निष्पाप बनते हैं। जो लोग शीतल और सुगंधित जल से श्री युगादिप्रभु का अभिषेक करते हैं, वे पंचम ज्ञान सहित पंचमगति-मोक्ष प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य (श्रीखंड) चंदन से प्रभु की पूजा करते हैं, वे लोग अखंड लक्ष्मी युक्त बन कीर्ति रूपी सुगंध के पात्र बनते हैं। कस्तूरी, अगर और केसर से जो प्रभु की पूजा करते हैं, वे सब जगत में गुरुपद प्राप्त करते हैं। जो भी भक्ति से प्रभु की अर्चना करते हैं, वे सब तीनों जगत को अपनी कीर्ति से सुवासित कर इस लोक में निरोगी होते हैं और परलोक में सद्गति प्राप्त करते हैं। जो भी सुगंधित पुष्पों से आदर सहित पूजा करते हैं, वे सब सुगंधित देह वाले और तीनों लोक के लोगों द्वारा पूजने योग्य बनते हैं। अन्य सुगंधित वस्तुओं से पूजा करने वाले सम्यग्दृष्टि श्रावक समाधि द्वारा इस स्थान पर ही सिद्धपद प्राप्त करते हैं। प्रभु के पास धूप करने से पन्द्रह दिवस के उपवास का फल मिलता है, और कर्पूर आदि महासुगंधित पदार्थों से धूप करने से मासखमण का फल मिलता है। प्रभु की वासक्षेप से पूजा करने से मनुष्य समस्त विश्व को सुवासित करते हैं। वस्त्र रखने से (पूजा में) वे विश्व में आभूषण रूप हो जाते हैं। अखंड अक्षतों से श्री प्रभु की भक्ति करने वाले मनुष्य अखंड सुख-संपत्ति को प्राप्त करते हैं। तथा प्रभुजी को मनोहर फल भेंटने से सफलता प्राप्त करते शत्रुञ्जय तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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