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________________ स्त्रियां भी कुशील वाली होंगी । गाँव श्मशान जैसे दिखेंगे। लोग निर्लज्ज, निर्दयी, देव-गुरु के निंदक और दिन प्रतिदिन अतिशय रंक और हीन सत्त्व वाले होंगे । पाँचवें आरे के अंत में इस भरतक्षेत्र में अंतिम दुःप्रसह नामक आचार्य, फल्गुश्री नामक साध्वी, नागिल नामक श्रावक, सत्यश्री नामक श्राविका, विमलवाहन नामक राजा, और सुमुख नामक मंत्री होंगे । दुःप्रसहसूरि के उपदेश से विमलवाहन राजा विमलगिरि तीर्थ पर आकर यात्रा और उद्धार करेगा । उस समय लोग दो हाथ प्रमाण काया वाले और बीस वर्ष के आयुष्य वाले होंगे । उनमें कुछ ही धार्मिक होंगे, बाकी प्रायः बहुत अधर्मी होंगे । __ आचार्य दुःप्रसह बारह वर्ष गृहस्थ अवस्था में रह कर और आठ वर्ष चारित्र पाल कर, अंत में अट्ठम तप करके काल करके सौधर्मकल्प में देव होंगे । उनके कालधर्म के बाद (पाँचवें आरे के अंतिम) दिन के पूर्वाण्ह काल में चारित्र का क्षय होगा, मध्यान्ह काल में राजधर्म का क्षय होगा, और अपराण्ह काल में अग्नि का क्षय होगा। इस प्रकार इक्कीस हजार वर्ष का दुःषम काल (पाँचवां आरा) पूरा होगा। फिर उतने ही प्रमाण का एकांत दुःषमा काल (छट्ठा आरा) शुरू होगा । उस समय लोग पशु के जैसे निर्लज्ज, बिल में रहने वाले, और जीने के लिए मत्स्य भक्षण करने वाले होंगे । उस समय शत्रुजयगिरि सात हाथ का हो जाएगा और फिर उत्सर्पिणी काल में वापस पूर्व के जैसे वृद्धि पाना शुरू करेगा । अनुक्रम से प्रथम तीर्थंकर पद्मनाभ प्रभु के तीर्थ में पूर्व के जैसे उस तीर्थ का उद्धार होगा, पद्मनाभ प्रभु की मूर्ति बिराजमान होगी, यह राजादनी (रायण) का वृक्ष भी होगा । इस प्रकार यह सकल तीर्थों में शिरोमणि गिरिराज जिनेश्वर भगवंत के जैसे उदय पा कर कीर्तन से, दर्शन से और स्पर्श से भव्य जीवों को सदा तारने वाला रहेगा। पाप का भार और विकार रूप अंधकार का नाश करने वाला, सैंकडों सुकृतों से प्राप्त होने योग्य, सर्व पीडा को हरने वाला तथा अनुपम त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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