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________________ ऐतिहासिक महत्त्व 36 शत्रुञ्जय तीर्थ भारत के गुजरात प्रान्त के भावनगर जिले के पालीताणा क्षेत्र में स्थित है । यह तीर्थ शाश्वततीर्थ कहलाता है । अतः इसकी यात्रा अवश्य करनी चाहिए । सिद्धगिरिराज एक महान् पावन भूमि है । जगत के अन्य धर्मों में भी किसी न किसी स्थान विशेष को पवित्र माने जाने की परम्परा रही है। जैसे हिन्दू काशी, गंगा हिमालयादि को, मुसलमान मक्का-मदीना को, क्रिश्चियन जेरुसलम तथा बौद्ध, बोधिवृक्ष गया वगैरह स्थानों को पवित्र मानते आ रहे हैं । इन धर्मों के अनुयायी मनुष्य जीवन में एक बार अपने - अपने इन पावन स्थानों में जाकर जन्म को सफल हुआ मानते हैं । जैन धर्म में भी ऐसे कितने ही स्थान पूजनीय व स्पर्शनीय माने गए हैं। जैसे शत्रुंजय, गिरनार, आबू, तारंगा, सम्मेतशिखर आदि । इनमें भी शत्रुंजय गिरिराज को सबसे अधिक श्रेष्ठ महापवित्र एवं पूज्य माना जाता है । शत्रुंजय कल्प नामक ग्रन्थ में प्रभु श्री महावीर देव इन्द्र से कहते हैं- "यदि कुछ भी ज्ञान हो और यदि पाप का भय हो तो, अन्य सब कदर्थना का त्याग करके श्री आदिनाथ प्रभु से अधिष्ठित पुंडरीक गिरिराज की पुण्यनिश्रा में जा कर हमेशा उनकी आराधना करो ।” हे इंद्र ! दु:षम काल के प्रभाव से अब से चौथे आरे की पूर्णाहुति के बाद लोग अधर्मी, निर्धन, अल्पायुषी, रोगी और कर से पीडित होंगे। राजा अर्थलुब्ध, चोरी करने में तत्पर और अति भयंकर होंगे । कुलवान् शत्रुञ्जय तीर्थ 3
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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